अगले 25 साल तक सूर्य के चक्कर लगाएगा आदित्य एल1; इसरो के मिशन से तैयार होगी स्पेस की अगली दुनिया

Mhara Hariyana News, New Delhi
सूरज की सतह पर छिपे हुए राज को खंगालने के लिए Sriharikota से Aditya एल वन रवाना हो गया। तकरीबन 4 महीने के बाद सूरज के जिस लैंग्रेजियन पॉइंट में Aditya एल वन पहुंचेगा वहां से अगले तकरीबन 25 साल तक यह हमारे वैज्ञानिकों को सूचनाओं भेजता रहेगा।
हालांकि Aditya एल वन की उम्र तो वैसे पांच साल की ही है। लेकिन जिन तकनीकियों के इस्तेमाल से उसको भेजा गया है वह कम से कम 25 साल से ज्यादा तक सूर्य के से रहस्यों को खंगालता रहेगा।
वरिष्ठ astronomers का कहना है कि कई सालों तक अब सूरज के तापमान में होने वाले फेरबदल और धरती पर होने वाले उसके असर को समझना बहुत आसान हो जाएगा। वही ISRO के इस महत्वपूर्ण मिशन पर अमेरिका यूरोप और चीन की Space एजेंसियों की निगाहें लगी हुई हैं।
वरिष्ठ astronomers डॉ संजीव सहजपाल बताते हैं कि भारत का यह मिशन NASA और ईसा(यूरोपीय Space एजेंसी) से कई गुना बेहतर और बड़ा है। उनका कहना है कि 1995 में NASA और यूरोपियन Space एजेंसी की ओर से भेजे गए सोहो(एसओएचओ) मिशन को महत्व 5 साल के लिए ही अंतरिक्ष में भेजा गया था।
यह मिशन आज भी तकरीबन 28 साल से लगातार सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट से पूरी जानकारियां भेजता रहता है। वह कहते हैं कि सोहो मिशन के 28 साल बाद जब ISRO ने अपना Aditya एल वन सूरज के राज को समझने के लिए रवाना हुआ है तो वह उससे कई गुना ज्यादा एडवांस तकनीकियों से भरा हुआ है। प्रोफेसर सहजपाल कहते हैं कि जिस तरह से इस मिशन को डिजाइन किया गया है उसे अनुमान यही लगाया जा रहा है कि अगले 25 साल से ज्यादा के वक्त तक यह हमारे वैज्ञानिकों को सूरज की सतह पर उत्पन्न होने वाली ऊर्जा और उसके पड़ने वाले असर का अध्ययन करने में बहुत सहायक होगा।
संजीव सहजपाल बताते हैं कि मिशन Aditya की लांचिंग के साथ ही यह दुनिया की दूसरी Space एजेंसी बन गई है जिसने सूरज के रहस्य को समझने के लिए इतना बड़ा मिशन लॉन्च किया है। उनका कहना है कि इस दौरान सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट पर पहुंचकर हमारे वैज्ञानिकों का यह मिशन न सिर्फ सूरज की पराबैंगनी किरणों को स्टडी करेगा बल्कि एक-रे और सूरज से निकलने वाली हाई एनर्जी प्रोटांस के प्रभाव को समझेगा।
वह कहते हैं कि इस पूरे मिशन के दौरान वैसे तो 5 साल तक की प्रोग्रामिंग और इतने ही दिनों में मिलने वाली जानकारी के आधार पर समूची दुनिया के वैज्ञानिक अगले कई दशकों तक शोध कर सकते हैं। लेकिन सोहो मिशन के 28 साल बाद भेजे जाने वाले इस प्रोजेक्ट में ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल हुआ है जो की पुरानी मिशन से भी कई साल ज्यादा काम करके रिसर्च को आगे बढ़ता रहेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दौरान सूरज की सतह और उसके दायरे में आने वाले लैंग्रजियन पॉइंट्स पर चुंबकीय क्षेत्र बना हुआ है। इसी बिंदु पर सूरज की पड़ने वाली किरणों से धरती के तापमान और क्लाइमेट का पूरा प्रभाव पड़ता है। वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर संजीव सहजपाल कहते हैं इसी चुंबकीय क्षेत्र की वजह से धरती पर पड़ने वाले तापीय असर को भी मॉनिटर किया जा सकेगा।
वह कहते हैं कि सूरज की सतह का तापमान तो 6000 डिग्री सेल्सियस है लेकिन जो सूरज का कोरोना है उसका पर कई लाख डिग्री सेल्सियस का तापमान होता है। वह कहते हैं कि इस मिशन के माध्यम से इस बात को भी वैज्ञानिक अपने शोध के दायरे में लाएंगे कि आखिर सूरज की सतह और उसके कोरोना के तापमान में इतना बड़ा अंतर क्यों है।
उनका कहना है कि फिलहाल यह तो अभी कई सालों के शोध के बाद पता चल सकेगा। वही इस मिशन से सूरज की करने की वजह से धरती पर होने वाले क्लाइमेट का भी अध्ययन कर बड़ी जानकारियां हासिल की जा सकेंगी।
इस मिशन के माध्यम से सबसे महत्वपूर्ण जानकारी यह भी पता चल सकेगी कि सूरज की किरणों के एक्टिव होने से किस तरीके का भविष्य में धरती पर असर पड़ने वाला है। वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर सहजपाल कहते हैं कि सूरज की किरणों की वजह से धरती की मैग्नेटिक फील्ड पर पड़ने वाले असर को भी यह मिशन बारीकी से अध्ययन करेगा।
उनका कहना है कि सूरज की करने का धरती की मैग्नेटिक फील्ड से टकराने पर बड़े बदलाव होते हैं। अब इन बदलावों का उस पॉइंट पर क्या असर होता है इसका अध्ययन मिशन Aditya के माध्यम से किया जाएगा।
दरअसल NASA और यूरोपियन Space एजेंसी की ओर से भेजे गए सोहो मिशन ने अभी तक सूरज की निकलने वाली किरणों से पड़ने वाले असर को मॉनिटर तो किया है लेकिन धरती की मैग्नेटिक फील्ड पर किस तरीके से बड़ा असर पड़ रहा है उसको मिशन Aditya एल वन के माध्यम से ज्यादा बेहतर तरीके से आंका जा सकेगा।
वह कहते हैं जिस जगह पर जाकर ISRO का यह मिशन काम करेगा वहां पर सूरज और पृथ्वी की ग्रेविटेशन अट्रैक्शन जीरो रह जाती है। इसीलिए इस लैंग्रेजियन पॉइंट को सूरज के रहस्य को समझने के लिए चुना गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज का तापमान सूरज की सतह से लेकर उसके तमाम ग्रेविटेशनल पॉइंट तक अलग-अलग तरह का होता है।
इसका अध्ययन करके इस बात की भी पड़ताल की जाएगी की धरती के किस हिस्से में सूरज असर किस तरह पड़ रहा है। इस दौरान शोध के दायरे में सूरज के अलग-अलग हिस्सों में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा भी रहेगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक सूर्य के तापमान के बारे में जितनी भी जानकारियां आई हैं वह सोहो मिशन के माध्यम से ही ज्यादातर सामने आई हैं। अब सूरज की सतह और वहां से निकलने वाली किरणों समेत उसके तापमान और मैग्नेटिक फील्ड की पूरी जानकारी मिशन Aditya एल वन के माध्यम से पता चलेगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मिशन के माध्यम से सबसे महत्वपूर्ण जानकारी और शोध धरती पर पड़ने वाले सूरज की किरणों और उसकी वजह से पड़ने वाले क्लाइमेट के असर की मिलेगी। वह कहते हैं कि अभी अंतरिक्ष में 8000 से ज्यादा सैटेलाइट हर वक्त घूमते रहते हैं।
सूरज की किरणों से इन सेटेलाइट पर पड़ने वाले असर को भी इस मिशन के माध्यम से मॉनिटर किया जाएगा। इसके अलावा मिशन Aditya भविष्य में अंतरिक्ष में होने वाली तमाम बड़ी गतिविधियों और स्थापित किए जाने वाले अन्य सैटेलाइट समेत Space स्टेशंस को मजबूती के साथ स्थापित करने में बड़ी भूमिका अदा करने वाला है। क्योंकि मिशन Aditya के माध्यम से मिलने वाली सूर्य की ऊर्जा के रहस्यों को जानकर ही अंतरिक्ष में भविष्य की दुनिया तैयार की जाएगी।