'Manipur की घटना भयानक, महिलाओं को भीड़ के हवाले कर देखती रही पुलिस', SC ने पूछे तीखे सवाल

 

Mhara Hariyana News, New Delhi
Supreme Court ने कहा कि Manipur में दो महिलाओं से Gang rape के बाद उन्हें निर्वस्त्र परेड कराना भयानक अपराध है। Top court ने कहा, पुलिस ने दोनों महिलाओं को उग्र भीड़ को सौंप दिया और चुपचाप खड़ी रही। यह सुनने के बाद हम नहीं चाहते कि पुलिस मामले की जांच संभाले। 
Court ने Manipur पुलिस से अब तक दर्ज प्राथमिकियों, उनमें उठाए कदमों की पूरी जानकारी मंगलवार की Hearing में रखने को कहा। Court ने संकेत दिया कि केंद्र व Manipur सरकार के वकीलों को सुनने के बाद वह वहां स्थिति की निगरानी के लिए एसआईटी या पूर्व जजों की समिति गठित कर सकता है।

CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ वीडियो में नजर आने वाली दोनों महिलाओं की याचिका पर Hearing कर रही थी। पीड़िताओं ने मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने के लिए Supreme Court का रुख किया है।

14 दिन बाद क्यों दर्ज हुई एफआईआर
पीठ ने पूछा, महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने की वारदात चार मई की है, तो पुलिस ने 14 दिन बाद 18 मई को मामला क्यों दर्ज किया? पुलिस आखिर क्या कर रही थी? एक एफआईआर 24 जून यानी एक महीने तीन दिन बाद मजिस्ट्रेट Court में क्यों ट्रांसफर की गई? 
Hearing के दौरान केंद्र और राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा, अगर Top court हिंसा के मामलों में जांच की निगरानी करने का फैसला करती है, तो केंद्र सरकार को इससे आपत्ति नहीं है। अटार्नी जनरल ने Top court से सीबीआई जांच की व्यक्तिगत रूप से निगरानी की भी पेशकश की। पीठ ने Manipur हिंसा से जुड़ी सभी याचिकाओं को एक साथ कर मंगलवार के लिए सूचीबद्ध किया।

छह हजार एफआईआर को अलग अलग श्रेणी में बांटने की जरूरत
पीठ ने कहा, हमें छह हजार एफआईआर को अलग-अलग श्रेणी में बांटने की जरूरत पड़ेगी। कितनी जीरो एफआईआर हैं, कितनी गिरफ्तारियां हुई, कितने न्यायिक हिरासत में हैं, कितने मामले 156(3) के तहत दर्ज किए गए, कितने धारा 164 के बयान दर्ज किए गए और कितनी कानूनी सहायता दी जा रही है, इन सभी बातों को जानने की जरूरत है। 
शीर्ष Court ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए व्यापक तंत्र विकसित करने का आह्वान किया। पीठ ने एसआईटी गठन की स्थिति में उसकी संरचना पर राज्य और केंद्र सरकारों की राय भी मांगी। पीठ ने कहा, हमें अपने-अपने नाम भी दें और याचिकाकर्ताओं के सुझाए नामों पर भी राय दें।

Manipur की बर्बरता को दूसरे राज्यों से नहीं जोड़ सकते
Supreme Court ने कहा, हिंसाग्रस्त Manipur में महिलाओं के खिलाफ बर्बर हिंसा अभूतपूर्व है। इसे पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं से जोड़कर नहीं देख सकते। Top court ने वकील व भाजपा नेता बांसुरी स्वराज की विपक्ष शासित इन राज्यों में इसी तरह की घटनाओं से जुड़ी हस्तक्षेप याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। 
CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष वकील व भाजपा नेता बांसुरी स्वराज ने कहा, बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर भी विचार करने की जरूरत है और जो तंत्र विकसित करने की मांग की गई है उसे अन्य राज्यों पर भी लागू किया जाना चाहिए। भारत की सभी बेटियों का निवेदन है कि उनकी रक्षा होनी चाहिए। 
इस पर पीठ ने कहा, क्या आप एक पल के यह कह रही हैं कि भारत की सभी बेटियों के लिए कुछ करें या किसी के लिए कुछ भी न करें? पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं। यह हमारी सामाजिक वास्तविकता का हिस्सा है। वर्तमान में, हम ऐसी किसी चीज से निपट रहे हैं जो अभूतपूर्व की है।

सरकार के कदम से तय होगा हम हस्तक्षेप करेंगे या नहीं
Hearing के दौरान पीठ ने कहा, Manipur हिंसा मामले में हमारे हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। यदि अदालत संतुष्ट है कि अधिकारियों ने पर्याप्त रूप से काम किया है, तो वह बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करेगी। पीठ ने कहा, मान लीजिए कि एक महिला Manipur के राहत शिविर में है, जो अपना बयान दर्ज कराने जा रही है। 
हम उसे मजिस्ट्रेट अदालत में जाकर (धारा) 164 के तहत बयान दर्ज कराने के लिए नहीं कह सकते। हमें अनिवार्य रूप से यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय की प्रक्रिया उसके दरवाजे तक जाए, उसका बयान दर्ज करे, उसका बयान उन स्थितियों में दर्ज करे जो बयान दर्ज करने के लिए अनुकूल हों।