Red Planet Day: मंगल ग्रह पर इंसान रह सकते हैं? कहना जितना आसान है, रहना उतना ही मुश्किल
Mhara Hariyana News:
मंगल ग्रह पर मानव जीवन की परिकल्पना हमें रोमांच से भर देती है. एलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स साल 2026 तक मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजना चाहती है. कंपनी इस लाल ग्रह पर इंसानों के लिए बस्तियां बसाने का विचार कर रही है. केवल स्पेसएक्स ही नहीं, बल्कि नासा, इसरो, रोस्कोस्मोस समेत कई सरकारी और निजी स्पेस एजेंसियों ने मंगल पर मानव बस्तियां बसाने के लिए रोमांचक प्रोजेक्ट शुरू किया है.
हर साल 28 दिसंबर को रेड प्लेनेट डे मनाया जाता है, जो अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मेरिनर-4 के प्रक्षेपण का प्रतीक है. तो ऐसे में, जबकि स्पेस एजेंसियां मंगल पर इंसानी जीवन की परिकल्पना कर रही है, मूल सवाल ये है कि इस लाल ग्रह पर इंसानों का रहना कितना चुनौतीपूर्ण होगा? मंगल ग्रह पर रहना इंसानों के लिए कितना कठिन है और इस राह में कौन-सी बाधाएं हैं?
मंगल पर बसने का मिशन
भारतीय, अमेरिकी या अन्य स्पेस एजेंसियां अपने-अपने मंगल मिशन पर काम कर रही हैं, जिनका उद्देश्य इंसानों को पृथ्वी से मंगल ग्रह पर बिना किसी वापसी मिशन के भेजना है. इस मिशन का उद्देश्य एक आत्मनिर्भर बस्ती स्थापित करना है, जहां इंसान लंबे समय तक यहां रह सकें. वास्तविक जीवन में फिलहाल इंसानों ने कभी मंगल ग्रह पर कदम नहीं रखा है. मंगल की परिस्थितियों के अनुकूल होने की राह में कई चुनौतियां हैं.
ऑक्सीजन नहीं, वातावरण भी प्रतिकूल
मंगल ग्रह पर वायुमंडल का आयतन पृथ्वी के वायुमंडल की तुलना में केवल 1 फीसदी है. मंगल ग्रह पर वायुमंडलीय दबाव भी बेहद कम है. रिपोर्ट के अनुसार, धरती की तुलना में मंगल ग्रह पर काफी कम हवा है. यहां के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और आर्गन गैसें पाई जाती हैं. मंगल धरती के आकार का केवल आधा है. यहां ऑक्सीजन बेहद कम है. ऐसे में स्पष्ट रूप से यह ग्रह मानव जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है.
गुरुत्वाकर्षण की कमी
धरती पर इंसानों के टिके रहने की एक वजह अनुकूल गुरुत्वाकर्षण भी है. स्पेस में जाते ही गुरुत्वाकर्षण कम होता जाता है. धरती की तुलना में मंगल ग्रह पर बेहद कम गुरुत्वाकर्षण है. इंसानों के हार्ट और हड्डियों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. माइक्राेग्रैविटी इंसानी शरीर पर निगेटिव असर करती है. इससे लो ब्लडप्रेशर की स्थिति बनेगी और इंसानों के पैर बेहद कमजोर हो सकते हैं.
मंगल ग्रह पर ज्वालामुखी
सौर मंडल का अबतक का सबसे ऊंचा ज्ञात पर्वत ओलंपस मॉन्स है, जो मंगल ग्रह पर सबसे बड़ा ज्वालामुखी है. यह विशाल पर्वत करीब 16 मील (25 किलोमीटर) लंबा और 373 मील (600 किलोमीटर) व्यास का है. रिपोर्ट के अनुसार, यह अरबों साल पहले बना होगा, लेकिन इसके लावा के प्रमाण इतने हाल के हैं कि कई वैज्ञानिकों का मानना है, यह अभी भी सक्रिय हो सकता है.
यह जानना भी दिलचस्प है
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि फोबोस ( मंगल का सबसे बड़ा और रहस्यमय चंद्रमा है) अंततः गुरुत्वाकर्षण बलों द्वारा अलग हो जाएगा. यह एक मलबे के क्षेत्र के निर्माण की ओर ले जाएगा और आखिर में एक स्थिर कक्षा में बस जाएगा. यह मंगल के चारों ओर शनि और यूरेनस की तरह एक चट्टानी वलय बनाएगा. धरती की तरह भूभाग का निर्माण.
दिलचस्प बात है कि मंगल, धरती के व्यास का लगभग आधा है, लेकिन इसकी सतह का क्षेत्रफल पृथ्वी की शुष्क भूमि यानी एक चौथाई भाग के बराबर है. मंगल ग्रह की सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में केवल 37 फीसदी है. यानी आप मंगल पर लगभग तीन गुना अधिक छलांग लगा सकते हैं.