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बोझ से बने मैच विजेता: स्टोक्स को संभालने में नजर आई चैंपियन इंग्लैंड की गहरी सोच

Match winner made of burden: Champion England's deep thinking was seen in handling Stokes

 
Match winner made of burden: Champion England's deep thinking was seen in handling Stokes
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Mhara Hariyana News:
तीस साल पहले 1992 जैसी सभी समानताओं के बावजूद इस टी20 वर्ल्ड कप की सबसे बड़ी विडंबना यह नहीं है कि यहां अंत में जीत 1992 के उपविजेता इंग्लैंड की हुई. लेकिन 1992 के वर्ल्ड कप में मार्क ग्रेटबैच को ‘पिंच-हिटर’ यानी आक्रामक बल्लेबाज के तौर पर इस्तेमाल करने की मार्टिन क्रो की बेमिसाल रणनीति का नतीजा 2022 में विपरीत रहा. यह न्यूजीलैंड द्वारा अपनाया गया एक क्रांतिकारी कदम था, जिसे श्रीलंका 1996 में दूसरे स्तर पर ले गया, और जो बाद में बड़े पैमाने पर खेल का अभिन्न हिस्सा बन गया.


सोचना वाली बात यह है कि तब 50 ओवर के गेम खेले जाते थे. इसलिए ये बात और भी प्रासंगिक और जरूरी है कि 20 ओवर के फॉर्मेट के बावजूद इस वर्ल्ड कप में किसी भी टीम ने पावरप्ले ओवरों का बेहतर उपयोग करना उचित नहीं समझा. शायद यह इस दुनिया के लिए स्वाभाविक ही है जहां पिछले 30 सालों में काफी कुछ उतना चुनौतीपूर्ण नहीं रह गया.

पहले 10 ओवर में अटैक का मिला फायदा
क्या 2022 में किसी टी20 मैच के पहले दस ओवरों में अगले दस ओवरों की तुलना में स्कोर करना आसान नहीं है? उन ओवरों के दौरान फील्डर्स 60% अधिक उत्साहित रहते हैं, जो उन्हें मैच के किसी अन्य चरण की तरह रिस्क लेने के लिए उकसाता है. जबकि अंतिम दस ओवरों में 40% ओवर ऐसे गेंदबाजों द्वारा फेंके जाते हैं, जो किसी भी हद तक स्कोरिंग को रोकने में माहिर होते हैं. हां, पावरप्ले के दौरान बॉल नई होती है जो बल्लेबाज को बांधकर रखती है, लेकिन इस दौरान बेखौफ होकर जोखिम उठाने के अपने अलग फायदे होते हैं (इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं). पावरप्ले के दौरान भाग्य को आसानी से भुनाया जा सकता है यानी फील्डर्स के ऊपर से बॉल को हिट किया जा सकता है. ज्यादातर टीमों ने कम से कम 9वें नंबर तक बैटिंग की लेकिन उनमें से ज्यादातर कभी ठीक से खेल में नहीं आ पाए. पावरफुल टीमों के स्थापित बल्लेबाजों ने पहले दस ओवरों का उपयोग टीम की स्थिति मजबूत करने और अगले दस ओवरों में स्कोर में तेजी लाने के लिए चुना. यही फार्मूला है. हालांकि सबकी अलग-अलग वजहें रहीं, लेकिन नतीजा वही रहा.

टॉप बल्लेबाजों को हुई रन बनाने में दिक्कत
ऑस्ट्रेलिया इस फॉर्मेट में कप्तान फिंच की फॉर्म और स्मिथ के फायदेमंद साबित न होने की समस्या से जूझ रहा था. फिर भी उन्होंने कैमरन ग्रीन को नियमित खिलाड़ी के तौर पर नहीं चुना, यहां तक कि यह साबित होने के बाद भी कि वे टॉप पावर हिटर हैं और टीम को इसकी सख्त जरूरत है. कोटा कारणों से दक्षिण अफ्रीका ने कप्तान और सलामी बल्लेबाज के तौर पर बावुमा का चयन किया, लेकिन वे टी20 खिलाड़ी नहीं हैं. इसके बावजूद तूफानी बल्लेबाज रीज़ा हेंड्रिक्स अपनी पारी का इंतजार करते रहे. न्यूजीलैंड की टीम में विलियमसन कोहनी की चोट के बाद फॉर्म में नहीं होने के बावजूद करीब हर बार डिफेंसिव पारी खेलने के लिए मजबूर हुए.

भारत के पास टॉप 3 में राहुल और कोहली थे लेकिन पिछले कुछ सालों में आईपीएल में स्ट्राइक रेट की समस्या दोनों के साथ रही है. हालांकि, उनके सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टी-20 बल्लेबाज अक्सर पावरप्ले के बाद नंबर 4 पर आए. पाकिस्तान के पास सलामी बल्लेबाज के रूप में बाबर और रिजवान थे. हालांकि इन दोनों प्लेयर्स ने खूब रन बटोरे लेकिन कम स्ट्राइक रेट से जो कड़े मुकाबले में टिकने के लिए ठीक नहीं है. खेल के इस फॉर्मेट में स्ट्राइक रेट के मुद्दों को देखते हुए इंग्लैंड के बैटिंग ऑर्डर में स्टोक्स की पोजीशन भी चिंताजनक थी. इसका असर आयरलैंड के खिलाफ उनके द्वारा हारे गए मुकाबले में दिखा.

हालांकि सभी टीमों के लिए वजहें अलग-अलग रहीं, लेकिन करीब-करीब एक जैसी समस्या से टीम का गुजरना सीमित ओवरों के क्रिकेट के इतिहास में अभूतपूर्व है. वेस्टइंडीज की टीम में कई आंतरिक मसले और नेतृत्व का संकट था, जो वह सिर्फ श्रीलंका की टीम थी जिसने इसका फायदा उठाया. एशिया कप जीत में उनकी हालिया जीत से टीम में जो रोमांचक सकारात्मकता दिखी वह टी20 क्रिकेट के आधुनिक युग के अनुकूल थी. लेकिन उनके सभी तेज गेंदबाजों को चोट लगने का असर टीम के मनोबल पर पड़ा. इसके अलावा ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में उनके प्रमुख बल्लेबाजों के जल्दी अभ्यस्त नहीं होने से स्थिति और खराब हो गई.

बेन स्टोक्स पर इंग्लैंड ने अपनाई स्मार्ट रणनीति
इस बीच जिस टीम ने आधुनिक सीमित ओवरों के क्रिकेट में इतिहास रचा और अब टेस्ट क्रिकेट के लिए भी यही कर रहा है, वह है इंग्लैंड जिसने बेन स्टोक्स के बोझ बन जाने की संभावना को देखते हुए लचीले रुख अपनाया. उन्होंने साफ तौर पर स्टोक्स की भूमिका तय कर दी और टीम के ढह जाने की स्थिति में उन्हें एक संकट मोचक के तौर पर इस्तेमाल किया. या फिर ऐसी स्थिति में उन्हें शीट-एंकर यानी अंतिम विकल्प की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी जब टीम बहुत ज्यादा दबाव में थी और आवश्यक स्ट्राइक रेट की कमी थी. इसका परिणाम तुरंत मिला, स्टोक्स ने श्रीलंका और फिर फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ गंभीर दबाव में मैच जीतने वाले प्रदर्शन किए, जबकि हर दूसरे बल्लेबाज के पास धुंआधार बल्लेबाजी करने का अनुभव था.

इस टूर्नामेंट के सबसे प्रमुख बल्लेबाजी क्षणों पर विचार करें, तो मुकाबले में टॉप ऑर्डर का महत्व स्पष्ट हो जाता है. फिन एलेन की 16 गेंदों में 42 रनों की आतिशी पारी को कॉनवे (जिन्होंने आखिरकार मैन ऑफ द मैच मिला) के 58 गेंदों पर 92 रनों के मुकाबले ज्यादा याद किया जाएगा, क्योंकि उनकी पारी गति पैदा करने वाला नॉकआउट पंच जैसी थी. इस आतिशी पारी की वजह से नेट रन रेट में ऑस्ट्रेलिया पिछड़ गया और वह सेमीफाइनल में जगह बनाने से चूक गया. ठीक वैसे ही जैसे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शुरुआती ओवरों में पाकिस्तान के मोहम्मद हारिस के 11 गेंदों पर 28 रन को बाद के ओवरों में इफ्तिखार और शादाब की आक्रामक पारियों की तुलना में अधिक याद किया जाएगा. रिले रोसौव (56 गेंदों पर 109) और क्विंटन डी कॉक (38 गेंदों पर 63) ने बांग्लादेश को धराशायी कर दिया. न्यूजीलैंड की टीम के 3 विकेट पर 15 रन बनाने के बाद ग्लेन फिलिप्स के 64 गेंदों पर 104 रन की शानदार शतकीय पारी ने श्रीलंका को तहस-नहस कर दिया. लिटन दास के 27 गेंदों पर 60 रन ने भारत को थोड़ी देर के लिए आतंकित कर दिया. हेल्स (47 गेंदों पर 86 रन) और बटलर (49 गेंदों पर 80 रन) की आक्रमक शैली के सामने टीम इंडिया को सेमीफाइनल में सरेंडर करना पड़ा.

बाबर-रिजवान भारत की हार से भी नहीं सीखे
और फिर भी फाइनल में क्या हुआ? सेमीफाइनल में डिफेंसिव खेल की वजह से न्यूजीलैंड के अप्रभावी होने और इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफ़ाइनल में भारत की दयनीय शुरुआत देखने के बाद भी बाबर और रिज़वान अनुमानित स्ट्राइक रेट कायम नहीं रख पाए और पाकिस्तान (10 ओवर के बाद 2 विकेट पर 68) ने मैच गंवा दिया. लक्ष्य निर्धारित करने के लिहाज से स्ट्राइक रेट का खास महत्त्व है. इसने मध्य-क्रम पर बहुत अधिक दबाव डाला, क्योंकि सम्मानजनक स्कोर हासिल करने की घबराहट और समान लक्ष्य तक आत्मविश्वास के साथ पहुंचने में बहुत अंतर है. विश्वास का अभाव अक्सर घातक होता है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे 6 विकेट पर 69 रन बनाकर लड़खड़ा गए और अंतिम 5 ओवरों में सिर्फ 31 रन बना पाए.

पाकिस्तान की हार के लिए कप्तान बाबर आज़म पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. उन्होंने अपने स्ट्राइक रेट में कोई सुधार नहीं किया और पूरे टूर्नामेंट में चेतावनी के कई संकेत मिलने के बावजूद बल्लेबाजी क्रम में बदलाव (हारिस या शादाब को टॉप ऑर्डर में भेजना) नहीं करना टीम के लिए घातक साबित हुई. पाकिस्तान ने जल्दी विकेट नहीं लिए और इंग्लैंड पर दवाब नहीं बनाया, तभी पाकिस्तान के लिए मैच खत्म हो गया था. उनकी तरफ से कुछ शानदार बॉल जरूर डाले गए लेकिन ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करने वाली इंग्लैंड की टीम यह मैच हारने वाली नहीं था. उन्होंने पावरप्ले के दौरान 3 विकेट गंवाए, लेकिन उनका स्कोर 49 रन पर था, जिससे आवश्यक रन रेट को लेकर कोई दबाव नहीं रहा. नसीम और रऊफ ने बल्लेबाजों को बार-बार पटखनी दी, लेकिन वे उन्हें रन बनाने और नियमित रूप से रन बटोरने से नहीं रोका सके. निश्चित रूप से स्टोक्स को किस्मत ने साथ दिया, लेकिन उन्होंने चीजों को शांत और नियंत्रण में भी रखा. यह भी कि जब इंग्लैंड को 46 गेंदों में 54 रनों की जरुरत थी, तब ब्रूक का लापरवाह लॉफ्टेड शॉट अजीब लग रहा था, लेकिन उनके पास 7 विकेट बचे थे.

बेशक, शाहीन अफरीदी चोटिल न होते तो फर्क पड़ता, लेकिन जब उन्होंने मैदान छोड़ा तो इंग्लैंड को 29 रन पर 41 रन चाहिए थे और छह विकेट बचे थे. इन स्थितियों में कोई भी टीम 95 फीसदी मौकों पर मैच जीत जाती है, यहां तक कि बड़े मैचों में भी. इस बात को तो छोड़ ही दें कि उनके बाकी बचे सभी बल्लेबाज बल्लेबाजी कर सकते थे, आदिल रशीद 11वें नंबर पर थे. अफरीदी की चोट ने पाकिस्तान के लिए हार के दर्द को कुछ हद तक कम कर दिया, जो अच्छी बात है, लेकिन असल में इसे परिणाम में नहीं बदला जा सका.

इंग्लैंड को सकरात्मक सोच ने जिताया फाइनल
इंग्लैंड ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी क्योंकि वे अधिक सकारात्मक रहे, जो कुछ समय से उनकी संस्कृति रही है. आजम स्वभाव से रिस्क लेने वाले नहीं हैं, जो उन्हें एक अच्छा टी20 कप्तान नहीं बनाता है. यह इस बात से जाहिर हुआ कि बटलर के आउट होने पर अफरीदी या राउफ की बॉलिंग से नए बल्लेबाज पर अटैक करने के बजाय वे मोहम्मद वसीम को लेकर आए. विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जहां स्ट्राइक रेट का दबाव बनाने के लिए कुल स्कोर बहुत कम हो; उनके लिए इंग्लैंड को आउट करना जरूरी था. इसके अलावा शादाब खान के बजाय ऑफ स्पिनर इफ्तिखार को आदिल रशीद की आक्रामक गेंदबाजी का सामना करने के लिए भेजा गया. पाकिस्तान को खेल के इस फॉर्मेट में अधिक डायनामिक कप्तान की जरूरत है, खासकर अगर उन्हें अपनी उत्कृष्ट टी20 प्रतिभा को आईसीसी ट्रॉफी में बदलना है.

बेतुकेपन के अंतिम नोट के रूप में, जैसा कि क्रिकेट की दुनिया में होता है, स्टोक्स की जगह सैम कुरेन को मैन ऑफ द मैच (और मैन-ऑफ-द-टूर्नामेंट भी, जो सही था) का पुरस्कार मिला. गेंदबाजों की पिच होने के बावजूद, जहां 160 रन जीत के लायक स्कोर हो सकता था, दोनों पक्षों के 6 गेंदबाजों ने प्रति ओवर 7 से कम रन दिए. एक तरफ दो पाकिस्तानी बल्लेबाजों ने तीस रन बनाए और इंग्लैंड के कोई अन्य बल्लेबाज 26 रन के पार नहीं पहुंच पाए. वहीं स्टोक्स ने नाबाद 52 रन बनाकर दबाव के साथ लक्ष्य का पीछा किया. इस स्थिति में उनका स्ट्राइक रेट काम नहीं आता. हालांकि उन्होंने अपना काम किया और इंग्लैंड गेंद शेष रहते हुए मैच जीत गया. मानो इतना ही काफी नहीं था, उन्होंने इंग्लैंड के चार ओवरों को भी अच्छी तरह से संभाला और एक विकेट लिया. यहां तक कि कुरेन भी इस अवॉर्ड को पाकर शर्मिंदा दिखे और खुले तौर पर कहा कि स्टोक्स को मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड मिलना चाहिए था. यह अफ़सोस की बात है क्योंकि स्टोक्स अपने 2019 वर्ल्ड कप फाइनल मैन ऑफ द मैच अवार्ड में इसे शामिल करने के हकदार थे, भले ही हर कोई उन्हें इस जीत के साथ किसी और अवार्ड से अधिक का हकदार बनाएगा.

इंग्लैंड वाकई चैंपियन है, इससे भी ज्यादा वे 2019 के पचास ओवर के वर्ल्ड कप में थे. यहां उनका अंतिम विजेता बनना निश्चित रूप से अधिक विश्वसनीय रहा. भले ही उन्हें अपने दो प्रमुख गेंदबाजों वुड और टॉपली को चोट के करना टीम से बाहर करना पड़ा. लेकिन इस टूर्नामेंट में एकमात्र टीम इंग्लैंड ने खेल के नए तौर-तरीको को अपनाया. अन्य टीम के प्रतिभावान खिलाड़ियों को अपनी मानसिक बाधाओं से पार पाना है.