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घर रखा गिरवी, कार में बिताई रातें, तब ‘तानाशाह’ बने गोपीचंद

Mortgaged the house, spent nights in the car, then Gopichand became a 'dictator'

 
Mortgaged the house, spent nights in the car, then Gopichand became a 'dictator'
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Mhara Hariyana News:

सायना नेहवाल, पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत, परुपल्ली कश्यप, बी साईं प्रणीत, एसएस प्रणॉय, इन सभी खिलाड़ियों के नाम आपने सुने होंगे. इन सभी में जो एक बात कॉमन है वह यह कि यह सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान बढ़ा चुके हैं. कई बड़े टूर्नामेंट्स में उन्होंने मेडल जीते हैं. लेकिन इसके अलावा भी इनमें एक बात आम है वह यह कि ये सारे खिलाड़ी एक गुरु के शार्गिद हैं. वह गुरु जिसे कभी तानाशाह कहा जाता है तो कभी डॉन लेकिन उनकी आलोचना करने वाले भी यह भी बात मानते हैं कि बैडमिंटन में नई क्रांति लाने का श्रेय पुलैला गोपीचंद को ही जाता है.


गोपीचंद को अकसर ही भारतीय बैडमिंटन का तानाशाह कहा जाता है. उनके बारे में यह माना जाता है कि उनकी अकेडमी में एक पत्ता भी उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं हिल सकता. खिलाड़ियों के खाने-पीने से लेकर उनके फोन इस्तेमाल करने का वक्त तक गोपीचंद तय करते हैं. खिलाड़ी चाहे 8 साल का बच्चा हो या पीवी सिंधु जैसा स्टार गोपीचंद के नियम सभी के लिए एक जैसे हैं. गोपीचंद ने खुद कभी इस बात को नहीं नकारा. वह कहते हैं कि अगर आप उनके साथ जुड़ते हैं तो सबकुछ उनके हिसाब से ही होगा, उनकी मर्जी ही आखिरी फैसला होगा. लोग तानाशाह गोपीचंद को तो जानते हैं लेकिन आज जानिए पर्दे के पीछे की कहानी.

गोपीचंद ने अकेडमी के लिए गिरवी रखा अपना घर
गोपीचंद ने बतौर खिलाड़ी अपने करियर में काफी सफलता हासिल की. हालांकि करियर पर इंजरी का ग्रहण काफी भारी पड़ा. गोपीचंद ने फिर फैसला किया कि वह अपने देश को इस खेल की सुपरपावर बनाएंगे. अपने करियर के दिनों में ही गोपीचंद यह समझ चुके थे भारत इस खेल में तबतक आगे नहीं बढ़ेगा जबतक वह जमीनी स्तर पर बदलाव न करे. ओलिंपिक मेडल के लिए जरूरी है कि सोच चैंपियन जैसी हो. गोपीचंद अपनी अकेडमी शुरू करना चाहते थे लेकिन उनके लिए यह सफर आसान नहीं था. उन्होंने सरकार से ईनाम में मिली जमीन पर अकेडमी बनाने का फैसला किया. पैसों की कमी के चलते उन्होंने सबसे पहले अपना घर गिरवी रखा. परिवार ने इस फैसले में गोपीचंद का साथ दिया.

गोपीचंद को इंवेस्टर्स ढूंढने के लिए कई महीने मेहनत करनी पड़ी. वह हर मीटिंग में खुद जाते थे. ऐसे में अकेडमी का काम देखने की जिम्मेदारी उनकी मां ने उठाई. अभिजीत कुलकर्णी ने अपनी किताब ‘गोपीचंद फैंक्टर’ में बताया कि गोपीचंद की मां कैंसर से जूझ रही थीं लेकिन वह अकेडमी के बनने के दौरान वहीं रहती थी. ऐसा मौका भी आया जब अस्पताल में कीमोथेरेपी से लौटते ही वह अकेडमी जाती थी ताकि काम सही तरीके से चलता रहे. गोपी दिन में कई लोगों से मिलते थे.