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सलाम बाल कृष्ण ! घाटी में दहशतगर्दों के आगे न उठाई होती बंदूक तो उठते और जनाजे

Salute child Krishna! Had the gun not been raised in front of the terrorists in the valley, more funerals would have taken place

 
सलाम बाल कृष्ण ! घाटी में दहशतगर्दों के आगे न उठाई होती बंदूक तो उठते और जनाजे
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‘हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा’ उर्दू के इस मुहावरे का आम बोलचाल में काफी इस्तेमाल किया जाता है. जिसका मतलब है कि अगर आप हिम्मत के साथ आगे बढ़ते हैं तो खुदा (भगवान) भी आपकी सहायता करता है. दो दिन पहले जम्मू के राजौरी में तीन घरों में ओपन फायरिंग कर दी. दहशतगर्दों के हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें थीं. वो तीन घरों को निशाना बना चुके थे और चौथे की तरफ आगे बढ़ रहे थे. चार हिंदुओं की मौत हो चुकी थी और छह घायल पड़े थे. आतंकी पहले आधार कार्ड देख रहे थे और फिर गोलियां बरसा रहे थे. तभी एक शख्स ने ऐसी हिम्मत दिखाई की बुजदिल आतंकी जंगलों की तरफ भाग गए.


तीन घरों में लाशें बिछ चुकीं थीं. फिर आतंकियों का कलेजा ठंडा नहीं हुआ. वो चौथे घर की तरफ बढ़ने लगे. तभी बालकृष्ण ने अपनी रायफल से दो फायर किए. आतंकियों को लगा कि यहां पर सुरक्षाबलों ने उनको घेर लिया और वो वहां से भागना ही उचित समझा. बालकृष्ण ने कहा कि उके पास लाइसेंस नहीं था और उनको कभी इसकी जरुरत पड़ेगी इसकी भी संभावना नहीं थी. बस घर में इसके होने से ये लगता था कि हमारे पास सुरक्षा के लिए डंडा से कुछ अधिक चीज है.

गोलियों की तड़तड़ाहट सुन रुक गए
नए साल की शाम 42 वर्षीय बालकृष्ण अपनी कपड़े की दुकान से घर लौटे ही थे कि उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बालकृष्ण ने कहा, ‘मैंने अपनी राइफल उठाई और बाहर निकल गया. मैंने दो बंदूकधारियों को पड़ोस में घूमते देखा. वे मेरे घर के बहुत करीब थे. मैंने दो राउंड फायरिंग की तो दहशतगर्द घबरा गए और पास के जंगलों में भाग गए.’

और हत्या की होड़ में थे आतंकी
राजौरी शहर के पास एक गांव डांगरी चौक पर कपड़े की दुकान के मालिक बाल कृष्ण कहते हैं कि ये आतंकी और हत्या की होड़ में थे. इन्होंने कम चार घरों को निशाना बनाया था, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और छह अन्य घायल हो गए थे. इसके बाद वो ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) के एक पूर्व सदस्य बाल कृष्ण से टकरा गए. पुलिस और ऊपरी डांगरी पंचायत के सरपंच दर्शन शर्मा का कहना है कि अगर वो तुरंत ऐसा नहीं सोचते और डर जाते तो शायद हताहतों की संख्या कहीं अधिक होती. बालकृष्ण के गोलीबारी करने के बाद उग्रवादी जंगलों में भाग गए. इससे ग्रामीणों को अपने घरों से बाहर निकलने और घायलों को देखने में मदद मिली.

दूसरी बार ही कर रहे थे इस्तेमाल
यह केवल दूसरी बार था जब बालकृष्ण बिना लाइसेंस वाली रायफल 303 का इस्तेमाल कर रहे थे. पहली बार 1998-99 में सेना के आयोजित एक शस्त्र प्रशिक्षण शिविर में उन्हें और वीडीसी के अन्य सदस्यों को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बंदूकें दीं थीं. फिर हमें प्रत्येक को 100 राउंड कारतूस दिए गए. हमने सेना के प्रशिक्षण शिविर में 10 राउंड का इस्तेमाल किया. बाकी कारतूस बच गए.

VDC सदस्य थे बाल कृष्ण
बाल कृष्ण ने 24 साल से रायफल का इस्तेमाल नहीं किया. 1990 के दशक में घाटी अशांत थी. आए दिन आतंकी और उग्रवादी कश्मीरियों की हत्या कर रहे थे. उस वक्त जम्मू के 10 जिलों में अपनी और आसपास के इलाके की रक्षा के लिए VDC (Village Defence Committees) की स्थापना की गई थी. गांव के कुछ लोगों को सेना ने ट्रेनिंग दी थी और हथियार भी मुहैया कराए थे. 2002 के बाद इसने धीरे-धीरे अपना दबदबा खो दिया.

60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों से वापस लिए हथियार
डांगरी में भी शांति कायम रहने पर कुछ साल पहले जिला प्रशासन ने घोषणा की कि 60 से ऊपर के लोगों को अपने हथियार वापस करने होंगे. बाल किशन का कहना है कि चूंकि उसकी उम्र 60 साल से कम थी, इसलिए पुलिस ने उसे राजौरी पुलिस स्टेशन में एक पासपोर्ट फोटो जमा करने के लिए कहा, ताकि उसे अपनी बंदूक का लाइसेंस जारी किया जा सके.


अभी तक नहीं मिला लाइसेंस
उनका कहना है कि उन्हें अभी तक अपना लाइसेंस नहीं मिला है जबकि लगभग 8-9 महीने पहले राजौरी पुलिस ने अपने हथियार के साथ पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा था. इसकी जांच करने के बाद अधिकारी ने इसे साफ रखने के निर्देश के साथ मुझे बंदूक वापस कर दी. तीन बच्चों के पिता बाल कृष्ण कहते हैं कि आतंकवाद के दिनों में भी जब मुझे राजौरी शहर जाना पड़ता था तो मैं घर पर बंदूक रखता था.