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जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हुई COP27 का अच्छा और बुरा पक्ष क्या है? जानिए

What is the good and bad side of COP27 against climate change? Learn

 
What is the good and bad side of COP27 against climate change? Learn
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Mhara Hariyana News

अर्णव झा.संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन का नवीनतम संस्करण COP27 लगभग दो दिन चलने के बाद रविवार को खत्म हो गया. इस दौरान यह समझौता हुआ कि जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित गरीब देशों की मदद के लिए एक क्लाइमेट फंड स्थापित किया जाएगा. हालांकि, विकासशील दुनिया में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए विकसित देशों द्वारा ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड बनाने की प्रतिबद्धता के बारे में कुछ खुशी मनाई गई, लेकिन इस शिखर सम्मेलन के अंत की सामान्य प्रतिक्रिया निराशाजनक ही रही.


रविवार की सुबह शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए यूरोपीय संघ के जलवायु प्रमुख फ्रैंस टिमरमन्स ने स्पष्ट रूप से कहा कि शिखर सम्मेलन के अंतिम परिणाम से यूरोपीय संघ निराश हैं. COP27 के परिणामों और भविष्य पर चर्चा की जाए तो सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि- वास्तव में देखा जाए तो शायद इस सम्मेलन की एकमात्र उपलब्धि- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ सबसे कमजोर देशों का समर्थन करने के लिए ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड की स्थापना ही रही.

फंड की स्थापना की डील अंतिम क्षणों में हुई एक वास्तविक उपलब्धि थी, जिसे एक हफ्ते से अधिक बहस और असहमति के बाद अस्तित्व में लाया गया. इस सौदे की बारीकियों पर अभी भी काम करने की आवश्यकता है और यह सौदा संभवत: वर्षों तक चालू नहीं हो पाएगा. लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कवर करने में मदद करने के लिए एक समर्पित कोष होगा, जिससे कमजोर देशों को राहत मिलेगी.

अभी तक इस बात पर कोई समझौता नहीं हुआ है कि इस कोष से वास्तव में क्या कवर किया जाएगा, वह बुनियादी ढांचा होगा या फिर सांस्कृतिक संपत्ति. ये फंड कहां से आएंगे, इस पर भी स्पष्टता का अभाव है. हालांकि यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं फंड में पैसा डालने पर सहमत हो गई हैं. इस समझौते में विभिन्न स्रोतों से फंड जुटाने पर जोर दिया गया है.

इसमें विश्व बैंक और निजी निवेशकों जैसे वित्तीय संस्थानों जैसे मौजूदा स्रोत शामिल हैं. यूरोपीय संघ ने तकनीकी रूप से एक विकासशील राष्ट्र के रूप में वर्गीकृत होने के बावजूद चीन को फंड जमा करने के लिए कहा है. हालांकि चीन ने इस तरह के भुगतान करने से इनकार कर दिया. लॉस एंड डैमेज फंड के अलावा शिखर सम्मेलन में कुछ अन्य अच्छी बातें हुईं. इनमें से एक, ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने से रोकने के 2015 के लक्ष्य को जीवित रखा गया, हालांकि इस लक्ष्य को प्राप्त करने का तरीका अभी भी अस्पष्ट है.

इस सम्मेलन में मीथेन प्रदूषण को कम करने की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की संख्या भी 150 हो गई, संयुक्त राष्ट्र ने इस तरह के उत्सर्जन को नियंत्रण में रखने के लिए एक उपग्रह-आधारित निगरानी प्रणाली स्थापित करने की अपनी मंशा की घोषणा की. संयुक्त राष्ट्र ने कम आय वाले देशों को विश्वसनीय प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली से जोड़ने में मदद करने के लिए एक सिस्टम की स्थापना की भी घोषणा की. यह चेतावनी प्रणाली निजी क्षेत्र के भागीदारों द्वारा समर्थित सरकारी एजेंसियों द्वारा चलाई और स्थापित की जाएगी.

जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) के तहत ग्रीन एनर्जी में तब्दीली के लिए विकासशील देशों के लिए धन देने के लिए विकसित देशों में कुछ उत्साह भी था. पिछली सीओपी में, दक्षिण अफ्रीका इसका लक्ष्य था, इस बार यह इंडोनेशिया रहा. अन्य अच्छी खबरों में नए राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा के नेतृत्व के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ब्राजील की वापसी और अमेरिका व चीन के बीच जलवायु परिवर्तन सहयोग के लिए फिर एक बार साथ आना रहा, जो पहले ताइवान तनाव के कारण रुका हुआ था.

बुरा पक्ष
सीओपी 27 से निकले अंतिम दस्तावेज में ठोस विवरणों का अभाव है, यह कहना जल्दबाजी होगी. बहुप्रतीक्षित लॉस एंड डैमेज फंड के बारे में विवरणों की कमी के अलावा, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने पर भी कोई खास बातचीत नहीं हुई.

भारत ने विशेष रूप से कोयले को लक्षित करते हुए अपनी बात रखी. COP27 के अंतिम दस्तावेज में सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का आह्वान किया. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. केवल समझौते के साथ असंतुलित कोल पावर और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रयासों को प्रोत्साहित किया गया.

वास्तव में, सऊदी अरब की अगुवाई वाले देशों की जीवाश्म ईंधन लॉबी ने निर्भीकता से कहा कि भविष्य के लिहाज से जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता है, हालांकि इसने उत्सर्जन-कम करने वाली तकनीक में निवेश करने के लिए एक अस्पष्ट योजना की घोषणा करके अपनी प्रस्तुति को संतुलित करने का प्रयास किया.

सबसे खराब पक्ष
शायद COP27 का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह है कि यह बड़े वैश्विक जलवायु सम्मेलनों के लिए ताबूत में एक और कील जैसा है, जिन्हें कई विशेषज्ञ काम के नहीं मानते. COP27 अस्त व्यस्त और भाग लेने वालों के लिए निराशाजनक रहा. कई जानकारों ने बताया कि COP27 की ओर से तैयार अंतिम दस्तावेज वैश्विक जीवाश्म ईंधन लॉबी (Fossil fuel lobby) की रक्षा के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है. लॉबी की जीत का सबसे बड़ा प्रमाण अंतिम दस्तावेज में ‘कम उत्सर्जन और नवीकरणीय ऊर्जा’ की ओर बढ़ने की बात को शामिल करना है.

कम-उत्सर्जन वाले एनर्जी की बात करना जाहिर तौर पर प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा स्रोतों के उपयोग की अनुमति देने के लिए एक बचाव का रास्ता है, भले ही यह कोयले की तुलना में कम उत्सर्जन करता है, लेकिन किसी भी तरह से ग्रीन एनर्जी का प्रतिनिधित्व नहीं करता.

तेल और गैस उद्योग से संबंधित प्रतिभागियों को विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडलों के साथ खुले तौर पर घूमते और बातचीत करते देखा गया, नए तेल और गैस निष्कर्षण योजनाओं की संभावना के कारण अफ्रीकी देश एक प्रमुख लक्ष्य रहे. लेकिन जीवाश्म ईंधन लॉबी के प्रभाव से परे, शिखर सम्मेलन ने जलवायु परिवर्तन पर जिम्मेदारी के संबंध में विकसित देशों और बाकी दुनिया के बीच बड़े अंतर को भी स्पष्ट कर दिया.

जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करने का प्रयास जिम्मेदारी के सिद्धांत पर आधारित होता है, जो स्वीकार करता है कि विकसित दुनिया के राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन के संबंध में ज्यादा ध्यान देना चाहिए क्योंकि वे शुरुआती प्रदूषक रहे हैं.

इन देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए अब विकासशील देशों की तुलना में अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जबकि विकासशील देशों को उत्सर्जन में कुछ छूट दी जानी चाहिए ताकि उनके स्वयं के विकास में बाधा न आए. यह सरल सिद्धांत यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसी प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए विवाद का एक प्रमुख बिंदु बन गया है, जो अब ‘वैश्विक प्रयास’ जैसे बयानों के पीछे छिपना चाह रहे हैं.

लॉस एंड डैमेज फंड को पूरा करने पर विकसित राष्ट्र सहमत नहीं होंगे. इसके बजाय, वे चाहते थे कि भारत और चीन भी इसमें योगदान करें, वे चाहते थे कि निजी खिलाड़ी एक भूमिका निभाएं और यहां तक कि वह मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से फंडिंग भी चाहते थे. हालांकि सामूहिक जिम्मेदारी का आह्वान इस समय उचित लग सकता है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत और चीन जैसे देश पिछले कुछ दशकों में ही प्रमुख उत्सर्जक बने हैं. जबकि विकसित देशों ने ज्यादा उत्सर्जन किया है.

लेकिन इस ऐतिहासिक ऋण को स्वीकार करने के बजाय, यूरोपीय संघ जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भविष्य में उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों पर हस्ताक्षर करने वाली विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को इस फंड स्थापना से जोड़ने का प्रयास किया.