राम मंदिर के गर्भ गृह में मोदी समेत पांच लोग, क्या हैं 5 बड़े सियासी संदेश?

अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए रूपरेखा तय हो गई है. 22 जनवरी को मुख्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा, लेकिन 15 जनवरी से ही पूजा-पाठ और अनुष्ठान जैसे कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे. प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 22 जनवरी को दोपहर 12:15 से लेकर 12:45 के बीच में संपन्न होगा. प्राण प्रतिष्ठा के दौरान राम मंदिर के गर्भ गृह में केवल पांच लोग ही मौजूद रहेंगे, जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान होंगे. संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, सीएम योगी आदित्यनाथ और राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास शामिल होंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति को विराजमान कराएंगे और फिर भगवान की आंख की पट्टी खोलकर उन्हें आईना दिखाएंगे. इसके बाद पीएम मोदी भगवान श्रीराम को सोने के सिक्के से काजल लगाएंगे. पीएम मोदी के द्वारा ही रामलला की महाआरती संपन्न की जाएगी. रामलला की आरती में भी मुख्य यजमान प्रधानमंत्री सहित गर्भ गृह में रहने वाले यही पांच लोग शिरकत करेंगे. प्राण प्रतिष्ठा के दौरान गर्भ गृह में मौजूद रहने वाले पांच लोगों के जरिए पांच बड़े सियासी संदेश देने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है?
मुख्य यजमान पीएम मोदी
राम मंदिर के गर्भगृह में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य यजमान होंगे, जिसका सीधा संदेश है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का सपना साकार के पीछे उनकी अहम भूमिका रही है. सुप्रीम कोर्ट से भले ही राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया हो, लेकिन बीजेपी नेता इसका श्रेय पीएम मोदी को देते रहे हैं. नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो रामलला के दर्शन किए. 5 अगस्त 2020 को रामजन्मभूमि पर भूमिपूजन करके राम मंदिर की बुनियाद रखी थी और अब प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के मुख्य यजमान की भूमिका अदा करेंगे. इस तरह राम मंदिर की स्थापना से लेकर रामलला को विराजमान करने तक की अगुवाई पीएम मोदी ने किया. इससे यह संदेश देना है कि पीएम मोदी जो कहते हैं यानि हिंदुत्व की पृष्ठभूमि में कहते हैं, उसे करके दिखाते हैं.
राम मंदिर का उद्घाटन हिंदुओं के लिए कोई साधारण घटना नहीं है. करीब पांच सौ सालों से अयोध्या में भव्य राममंदिर का सपना लोग देख रहे थे, जो अब जाकर साकार हुआ है. इसकी अपनी धार्मिक महत्व है तो सियासी मायने भी हैं. पीएम मोदी की छवि हिंदूवादी नेता के तौर पर और भी मजबूत होगी. अडवाणी-अटल वाली बीजेपी ने अयोध्या में राम-मंदिर बनने की मुहिम को आगे बढ़ाया, लेकिन उसे अपने मुकाम तक पहुंचाने का काम नरेंद्र मोदी ने किया और इसके श्रेय हमेशा से मोदी के हिस्से में जाएगा. पीएम मोदी राम मंदिर के गर्भ गृह होने से हिंदुत्व पॉलिटिक्स के लिए एक टर्निंग पॉइंटहै, जिसका सियासी लाभ बीजेपी 2024 के चुनाव में उठाना चाहेगी. यही वजह है कि बीजेपी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को हर गांव में आयोजित करने के साथ-साथ लोगों को अयोध्या दर्शन कराकर राम मंदिर की भव्यता के अनुभव भी लोगों से साझा कराएगी.
संघ प्रमुख मोहन भागवत
रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान राम मंदिर के गर्भ गृह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद रहेंगे, जिसके अपने सियासी और सामाजिक मायने हैं. राम मंदिर निर्माण को इस मुकाम तक पहुंचाने में संघ का बड़ा योगदान रहा. आरएसएस के प्रमुख रहे बाला साहेब देवरस के दौर में बाबरी मस्जिद के खिलाफ राम मंदिर आंदोलन चलाने की पहल मानी जाती है. बताया जाता है कि 1980 में देवरस ने प्रचारकों से कहा था, ‘आपको राम मंदिर के मुद्दे पर प्रदर्शन तभी शुरू करना चाहिए, जब आप इस लड़ाई को अगले तीन दशक तक लड़ने के लिए तैयार हों. ये आपके धैर्य की परीक्षा की लड़ाई होगी, जो इस लड़ाई में पूरे धैर्य के साथ अंत तक लड़ता रहेगा, जीत उसी की होगी. संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद ने ही राम मंदिर को लेकर देश भर में आंदोलन चलाया.