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Lohri 2024: कब है लोहड़ी का पर्व, जानें कैसे और क्यों मनाया जाता है यह पर्व

 
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Lohri 2024: कब है लोहड़ी का पर्व, जानें कैसे और क्यों मनाया जाता है यह पर्व

सिखों और पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। यह पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस त्योहार की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं, यानी माघ मास शुरू हो जाता है। यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। हालांकि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ये त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी की रात को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके बाद अगले दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।

बहन और बेटियों को बुलाया जाता है घर
पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो, उन्हें विशेष तौर पर लोहड़ी की बधाई दी जाती है। घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी का काफी महत्व होता है। इस दिन विवाहित बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है। ये त्योहार बहन और बेटियों की रक्षा और सम्मान के लिए मनाया जाता है। वक्त के साथ एक सबसे खूबसूरत चीज देखने को मिली है कि परिवार वाले अब पहली लड़की के जन्म पर भी काफी धूमधाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाते हैं।

कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व?
मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। सूर्य मकर राशि में 15 जनवरी को सुबह 2 बजकर 43 मिनट में प्रवेश करेंगे इसलिए उदया तिथि को मानते हुए मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जाएगा। वहीं मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है इसलिए लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी दिन रविवार को मनाया जाएगा। लोहड़ी का पर्व सूर्यदेव और अग्नि देव को समर्पित है।

कैसे मनाते हैं लोहड़ी का पर्व?
लोहड़ी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी पर्व की रात को खुली जगह पर लकड़ी और उपले का ढेर लगाकर आग जलाई जाती है और फिर पूरा परिवार आग के चारों ओर परिक्रमा करता है और उसमें नई फसल, तिल, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली आदि को अग्नि में डालते हैं। साथ ही महिलाएं लोक गीत गाती हैं और परिक्रमा पूरी करने के बाद एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई भी देते हैं। अगर कोई मन्नत पूरी हो जाती है, तब गोबर के उपलों की माला बनाकर जलती हुई अग्नि को भेंट किया जाता है, इसे चर्खा चढ़ाना कहते हैं। इस पर्व के लिए ढोल नगाड़ों को पहले ही बुक कर लिया जाता है और सभी लोग ताल से ताल मिलाकर नाचते हैं।