सुरंग में 17 दिन फंसे रहे मजदूरों के जज्बे को सलाम : डा. पुरी
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ रविंद्र पुरी ने ढह चुकी सुरंग में 17 दिन में फंसे रहे 41 मजदूरों के जज्बे को सलाम किया जिन्होंने बेहद धैर्य और बिना आपा खोए वहां न केवल अपना समय बिताया बल्कि उन्होंने पूरी प्रक्रिया में कोई भावात्मक पक्ष न जोड़कर इसे पूरा होने में अपना सहयोग दिया।
डॉ पुरी ने कहा कि किसी भी दर्दनाक हादसे से या किसी मुसीबत से निकलने के बाद जितनी जल्दी हो सके अपने सामान्य रूप में आ जाना चाहिए किंतु कई बार किसी दर्दनाक हादसे या किसी मुश्किल के पल को जीने के बाद कुछ लोगों में एक मनोवैज्ञानिक समस्या पैदा हो जाती है, इसे पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का नाम दिया जाता है।
पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो किसी दर्दनाक हादसे से , किसी एक्सीडेंट या किसी मनोवैज्ञानिक आघात में से गुजरने के बाद पैदा हो सकती है। भारत में हर वर्ष लगभग एक करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं। इस रोग में घटना से संबंधित विचार फ्लैशबैक की तरह आने लग जाते हैं, कई बार रोगी घटना वाली घटना से संबंधित बाते, समान या जगह से बचने लगता है।
उसके मन में नकारात्मक विचार आने लग जाते हैं जिससे गुस्सा और चिड़चिड़ापन भी उनके व्यवहार में देखा जा सकता है। कई बार रोगी अधिक उत्तेजित रहने लग जाता है और उसे छोटी सी घटनाएं भी ज्यादा उत्तेजित कर देती हैं। नींद में व्याधान आने लगते हैं।इन सब बातों के चलते कई बार उनमें डिप्रेशन और चिंता विकार भी दिखाई देने लग जाते हैं।
डॉ रविंद्र पुरी ने बताया कि ऐसा नहीं है की मुसीबत से निकले हर व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है क्योंकि यह ग्यारह में से एक व्यक्ति के साथ अपने जीवन में कभी हो सकता है।ऐसे लोग भी होते हैं जो किसी मुसीबत से निकलने के बाद पहले से ज्यादा भावात्मक रूप से मजबूत और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त हो जाते हैं।
सत्रह दिन एक बंद गुफा में जिंदगी और मौत के बीच झूलते हुए गुजरने के बाद मजदूर इसे किस तरीके से लेंगे यह उनके मूल व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। इसलिए उन्हें सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी देख रेख के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सकों की सहायता की दरकार भी रहेगी। अगले कुछ महीने उनकी मानसिक का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
डॉ पुरी ने कहा कि यह सब कुछ करना इसलिए भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि मानसिक सेहत की तरफ ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते हैं और वह मनोवैज्ञानिक या डॉक्टर के पास तभी पहुंचते हैं जब उनकी मानसिक समस्या उनकी आम जिंदगी को बहुत ज्यादा प्रभावित करने लग जाती है।
बतौर मनोवैज्ञानिक वे पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से बचने के लिए किसी भी हादसे या मुसीबत से गुजर चुके व्यक्ति को आमतौर से सलाह देते हैं कि वह शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहे और अपने काम से कुछ समय निकालकर अपने परिवार और अपने दोस्तों के साथ गुणात्मक समय बिताए।
उसे सच्चाई से भागना नहीं चाहिए बल्कि उन जैसी दशा में फंसे लोगों की सहायता करने का प्रयास भी करना चाहिए। मन में अगर उस घटना से संबंधित कुछ बातें आ रही हों तो उन्हें रोकने का प्रयास नहीं करना है बल्कि उन्हें आने दे वह स्वयं ही धीरे-धीरे कम होती जाएगी।
पीड़ित व्यक्ति को अपने आप को अपने रूटीन कार्यों में व्यस्त रखना चाहिए। कई बार स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है तब कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी का प्रयोग करते हैं और मनोचिकित्सक एंटी डिप्रेसेंट दवाइयां देकर रोगी का मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करते हैं। डॉ पुरी ने संतोष जताते हुए कहा कि बहरहाल सभी मजदूर अभी खुश हैं और उनके जज्बे को सलाम है किंतु सरकार और स्वास्थ्य संबंधी एजेंसियों को उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर लगातार ध्यान रखना बेहद जरूरी है।