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America Loan Exposed: अमेरिका पर है जितना कर्ज उतने में बन जाएंगे कई देश

 
America Loan Exposed: अमेरिका पर है जितना कर्ज उतने में बन जाएंगे कई देश

जब किसी भी देश पर कर्ज की बात आती है तो सबसे पहले नाम पाकिस्तान का आता है. जो हमेशा कभी चीन तो कभी आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक के सामने पैसों के लिए गिड़गिड़ाता है. कर्ज के चलते ही श्रीलंका की इकोनॉमी भी दिवालिया हो चुकी है. कुछ दिन पहले भारत के कर्ज को लेकर भी खबरें आई थी. दिसंबर के महीने में आईएमएफ ने कहा था मीडियम टर्म में सरकारी कर्ज भारत की जीडीपी के बराबर या फिर उससे ज्यादा हो सकता है जो मौजूदा समय में 205 लाख करोड़ रुपए था. ये वो देश हैं जो गरीब हैं, विकासशील हैं या फिर विकसित होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं.


आज हम इन देशों की या उनके कर्ज के बारे में बात नहीं करेंगे. आज बात होगी दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी, आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की. उस अमेरिका के कर्ज की जो दुनिया को कर्ज बांटता है. उस अमेरिका की जिसकी इकोनॉमी के बराबर पर आने के लिए भारत जैसे देश को अभी भी 35 से 40 साल लग सकते हैं. जी हां, उस अमेरिका के कर्ज की जिसकी उंगलियों पर दुनिया की इकोनॉमी नाचती है.


अगर आप जान लेंगे कि अमेरिकी सरकार पर कितना कर्ज है तो आपके पैरों तले जमीन ही खिसक जाएगी. अमेरिका के कुल कर्ज के बराबर दुनिया में कई नए देशों को अच्छी-खासी इकोनॉमी के साथ खड़ा किया जा सकता है. ताज्जुब बात तो ये है कि बीते 23 सालों में अमेरिका पर कर्ज करीब-करीब 6 गुना तक बढ़ चुका है. ब्रिक्स ग्रुप के 10 देशों की कुल इकोनॉमी को भी जोड़ लिया जाए तो भी अमेरिकी कर्ज ज्यादा है. यूरोपीय यूनियन के 50 देशों के बराबर नए 50 देशों खड़े दिए किए जा सकते हैं. आइए जरा आंकड़ोंं से समझने की कोशिश करते हैं.

कितना है अमेरिका पर कर्ज
अमेरिका के सरकारी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका पर 33.91 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है. ताज्जुब की बात तो ये है कि अमेरिका की इकोनॉमी 26.95 ट्रिलियन डॉलर की है. इसका मतलब है कि अमेरिका पर कर्ज उसकी कुल इकोनॉमी से भी 7 ट्रिलियन डॉलर ज्यादा है. करीब एक साल पहले इसी कर्ज की वजह से डेट की सीलिंग का संकट खड़ा हो गया था. जिसकी वजह से ग्लोबल इकोनॉमी में हहाकार मच गया. अमेरिकी संसद से डेट सीलिंग के इस संकट को टालने का काम किया. वैसे आने वाले महीनों में फिर से अमेरिका को डेट सीलिंग के संकट का सामना करना पड़ सकता है. जिसका असर दुनिया की सभी इकोनॉमी पर पड़ता हुआ दिखाई दे सकता है.


जॉर्ज डब्ल्यू बुश से बाइडन तक तक कर्ज में इजाफा
जब अमेरिका राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के टेन्योर का आखिरी साल था यानी साल 2000 में अमेरिका पर कर्ज 5.7 ट्रिलियन डॉलर था. उसके अगले साल जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने सत्ता संभाली तब से अब तक बाइडन के कार्यकाल के आखिरी साल तक अमेरिका के कर्ज में करीब 6 गुना का इजाफा हो चुका है. साल 2010 यानी बराक ओबामा का दौर आने तक यह कर्ज 12.3 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया. उसके बाद डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल खत्म होने तक देश पर कर्ज करीब 10 साल में यानी साल 2020 तक 23.2 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया है. वहीं तीन सालों में इसमें 10 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा हो चुका है.

ब्रिक्स देशों की इकोनॉमी से भी ज्यादा
ब्रिक्स देशों में अब 10 देश है. इस ग्रुप में हाल ही में 5 नए देशों को शामिल किया गया है. मौजूदा समय इस ग्रुप में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन का नाम शामिल है. भारत और ब्राजील जैसे उभरते हुए देश पहले ही मौजूद है. रूस और साउथ अफ्रीका भी इस लिस्ट में पहले से ही रहे हैं. वहीं इूसरी ओर इस लिस्ट तीन खाड़ी देशों ईरान, सऊदी अरब और यूएई को शामिल किया गया. वहीं इजिप्ट और इथियोपिया को शामिल किया गया है. इन 10 देशों की कुल जीडीपी को जोड़ लिया जाए तो कुल 29.21 ट्रिलियन के आसपास होगी. मौजूदा समय अमेरिका पर कर्ज 33.91 ट्रिलियन डॉलर है. इसका मतलब है कि ब्रिक्स देशों की कुल जीडीपी से भी 4.7 ट्रिलियन डॉलर ज्यादा तो अमेरिका पर कर्ज है.

ब्रिक्स देशों की कितनी है जीडीपी
देश का नाम    जीडीपी (ट्रिलियन डॉलर में)
ब्राजील    2.13
रूस    1.9
इंडिया    3.732
चीन    18.56
साउथ अफ्रीका    0.399
इजिप्ट    0.398
इथियोपिया    0.156
ईरान    0.366
सऊदी अरब    1.06
यूएई    0.509
बनाए जा सकते हैं ब्रिक्स प्लस जापान जैसे नए देश
अमेरिका पर जितना कर्ज है, उतने पैसों में ब्रिक्स के 10 देश और उसमें जापान यानी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी जापान जैसे देशों को बनाया जा सकता है. यानी दुनिया के 11 बड़े देयाों के मुकाबले नए देशों को खड़ा किया जा सकता है वो भी उतनी की मजबूती के साथ. वहीं दूसरी ओर यूरोपीय यूनियन के 48 देशों की जीडीपी को भी मिला ली जाए तो भी अमेरिका के कुल कर्ज के बराबर भी नहीं पहुंच सकते हैं. इन देशों की कुल जीडीपी करीब 27 ट्रिलियन डॉलर है. इसका मतलब है कि दुनिया के 50 ऐसे देशों को दोबारा से नए सिरे से खड़ा किया जा सकता है.