Umesh Pal को बचाने राघवेंद्र शूटर्स के सामने आ गया':3 गोलियां लगीं…छाती पर बम फटा

Mhara Hariyana News, Prayagraj
"मेरे भाई ने Umesh Pal के आगे आकर गोली खाई। उन्हें 3 गोली उसी टाइम लग गई थीं। 1 पैर में, 2 पेट में। इसके बाद Umesh जब गली में भागे, तो उनको बचाने के लिए भइया गली की तरफ दौड़े।
वह Umesh के करीब पहुंचे ही थे कि गुड्डू मुस्लिम ने उन पर बम मार दिया। बम के धमाके से उनकी छाती का ऊपरी हिस्सा बुरी तरह जख्मी हो गया। ब्लास्ट के बाद अतीक के लोग वहां से भाग गए थे, भइया उस वक्त दर्द से तड़प रहे थे।"
5 दिन तक भइया जिंदगी और मौत से लड़ते रहे
"24 फरवरी से 1 मार्च यानी 5 दिन तक भइया जिंदगी और मौत से लड़ते रहे। मैं भी उन्हीं के साथ था। वे होश में आते तो बस उस दिन की घटना के बारे बोलते। फिर दर्द के मारे कराहने लगते थे। मैं चाहता था कि भइया पूरे परिवार के साथ होली मनाएं , लेकिन होली से 7 दिन पहले वह हम को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।" इतना कहते हुए ज्ञानेंद्र सिंह की आंखें भर आती हैं। उनके बगल में बैठे बाबा अमर बहादुर सिंह कंधे पर हाथ रखकर उन्हें संभालते हैं।
ये दर्द है Umesh Pal हत्याकांड में जान गंवाने वाले गनर राघवेंद्र सिंह के भाई ज्ञानेंद्र सिंह का। वो परिवार जो घर के बड़े बेटे की शादी की तैयारी में जुटा था। क्या पता था कि शादी से महज 2 महीने पहले ही उसी चौखट से राघवेंद्र की अर्थी उठानी पड़ेगी।
रायबरेली जिले की लालगंज तहसील में पड़ता है कोरिहरा गांव। राघवेंद्र यहीं के रहने वाले थे। साल 2014 में पिता राम सुमेर की मौत के बाद 2 बहनें प्रिया, अर्चना और भाई ज्ञानेंद्र की पढ़ाई से लेकर शादी तक की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। राघवेंद्र को गुजरे हुए 35 दिन बीत चुके हैं। उनके घर पर पसरा सन्नाटा उनके जाने का जख्म खुद बयां कर रहा है।
दिसंबर २०२२ में हुई भी राघवेंद्र की सगाई
घर में राघवेंद्र का कमरा दिखाते हुए उनके भाई ज्ञानेंद्र कहते हैं, "दिसंबर 2022 में भइया की सगाई धूमधाम से हुई थी। घर पर उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं, सभी खुश थे। उस वक्त भइया हरदोई में कॉन्स्टेबल थे।
6 फरवरी को उनका फोन आया। उन्होंने बताया कि उनका ट्रांसफर हरदोई से प्रयागराज कर दिया गया है। उन्हें Umesh Pal की सिक्योरिटी में लगाया गया है। इस खबर से सभी खुश थे, क्योंकि भइया घर के और पास आ रहे थे।"
मार्च में होनी थी शादी
"पहले शादी मार्च में होनी थी, लेकिन Umesh Pal अपहरण मामले की पेशी होने की वजह से उन्होंने ही डेट मई में शिफ्ट करवा दी थी। भइया कहते थे कि एक बार पेशी हो जाए फिर आराम से छुट्टी मिल जाएगी। वो टाइम इत्मिनान से घरवालों के साथ बिताएंगे।"
शूटआउट से 4 घंटे पहले घरवालों से बात की
ज्ञानेंद्र कहते हैं, "24 फरवरी की दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर भइया का फोन आया। वह उस वक्त कोर्ट में थे। खुश थे...बोल रहे थे कि अपहरण मामले में आज आखिरी पेशी है।
इसके बाद अतीक और उसके साथियों को सजा मिलनी है। फिर शादी के लिए छुट्टी डालकर घर आ जाउंगा।"
"उस वक्त तक मुझे नहीं पता था कि मैं अपने भाई से आखिरी बार फोन पर बात कर रहा हूं। शाम 7 बजे के करीब हमने टीवी पर न्यूज देखी कि Umesh Pal पर जानलेवा हमला हुआ है। घटना में Umesh और उनके साथ चल रहे दोनों गनर भी बुरी तरह से घायल हो गए हैं।
इस खबर से पूरा घर परेशान हो गया। मां जोर-जोर से रोए जा रही थीं। मेरे पास रिश्तेदारों के फोन पर फोन आने लगे। ऐसा लग रहा था मानों कोई बड़ी मुसीबत आने वाली है।"
"घटना की रात एक वीडियो वायरल हो रहा था। जिसमें कुछ लोग गाड़ी से निकल रहे Umesh Pal पर गोलियां चला रहे थे। उस वीडियो में जो पुलिसवाला सबसे पहले Umesh को कवर करते दिख रहा था, वह राघवेंद्र भइया ही थे।"
3 गोली लगीं, लंगड़ाते हुए Umesh को बचाने दौड़ पड़े राघवेंद्र
6 दिन तक अस्पताल में इलाज के दौरान राघवेंद्र को बीच-बीच में होश आता। तब वह ज्ञानेंद्र से शूटआउट के दौरान का पूरा हाल बताते। ज्ञानेंद्र कहते हैं, "कार के पीछे का दरवाजा खोलकर जैसे ही Umesh घर की तरफ जाने लगे अचानक उनकी कमर पर एक गोली लगी।
वह तुरंत गली की तरफ भागे। शूटर उन पर गोलियां बरसा रहे थे। इस बीच उन्हें बचाने के लिए जब भइया सामने आ गए, तो उन्हें एक के बाद एक 3 गोलियां लग गईं।"
"भइया घायल होकर जमीन पर गिर गए। बावजूद इसके वह रुके नहीं। उन्होंने देखा कि Umesh गली की तरफ भाग रहे हैं, तो वह भी उन्हें बचाने के लिए उस तरफ दौड़ पड़े। वह घर के दरवाजे के पास पहुंच ही थे, तभी पीछे से गुड्डू मुस्लिम ने उन पर बम मार दिया।"
"बम धमाके के बाद वहां के लोग चिल्लाने लगे। इसी बीच, मौका देखकर सभी अपराधी भाग गए। भइया के पेट से खून निकल रहा था। उनकी गर्दन से लेकर छाती तक के हिस्से पर गहरा घाव हो गया था। जिस जगह ये घटना हुई धूमनगंज थाना वहां से सबसे नजदीक था। वहां तैनात भइया के दोस्तों ने उन्हें स्वरूप रानी अस्पताल में भर्ती करवाया।"
प्रयागराज की जगह लखनऊ में ट्रीटमेट होता तो भाई बच जाते
रात 8 बजे राघवेंद्र के दोस्तों ने उनके परिवार तक सूचना पहुंचाई। अफरा-तफरी के बीच पूरा घर रात में ही प्रयागराज पहुंचा। हालांकि, ज्ञानेंद्र स्वरूप रानी अस्पताल प्रशासन के काम से संतुष्ट नहीं थे। वो आज भी यही मानते हैं कि अगर राघवेंद्र को प्रयागराज की जगह सीधे लखनऊ SGPGI में भर्ती करवाया जाता तो, शायद उनका भाई आज जिंदा होता।
ज्ञानेंद्र ने बताया, "हम देर रात स्वरूप रानी अस्पताल पहुंचे। वहां अस्पताल के CMO ने बताया कि भइया को ICU वार्ड में रखा गया है। लेकिन वह जगह बिलकुल ICU वार्ड जैसी नहीं लग रही थी। भइया एक स्ट्रेचर पर लेटे थे, उनके घाव पर मक्खियां भिनभिना रही थीं।"