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भंडारों से जनसेवा के साथ साथ बढ़ता है आपसी भाईचारा : प्रोफेसर ढींडसा

जेसीडी विद्यापीठ में मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर लगाया गया भंडारा
 
भंडारों से जनसेवा के साथ साथ बढ़ता है आपसी भाईचारा : प्रोफेसर ढींडसा 

सिरसा: जेसीडी विद्यापीठ में मकर संक्रांति पर्व के उपलक्ष्य में आलू-पूरी का भंडारा लगाया गया ,जहां पर भारी संख्या में जेसीडी के कर्मचारियों ने श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ कमाया। भंडारे के दौरान जेसीडी विद्यापीठ के महानिदेशक एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ. कुलदीप सिंह ढींडसा ने अपने हाथों से  प्रसाद वितरित कर सभी के उत्तम स्वास्थ्य की मंगलकामना की। इस अवसर पर उनके साथ कुलसचिव डॉ. सुधांशु गुप्ता, जनसंपर्क निदेशक प्राचार्य डॉ जयप्रकाश ने भी प्रसाद वितरित किया । इस अवसर पर डॉ. ढींडसा ने इस उत्तम कार्य के लिए आयोजकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि जेसीडी विद्यापीठ द्वारा हर वर्ष आपसी सहयोग से भंडारे का आयोजन किया जाता है, इससे जहां सेवा होती है वहीं आपसी भाईचारा भी बढ़ता है। उन्होंने कहा कि धर्म-शास्त्रों में भंडारा करना इसलिए जरूरी माना गया है क्योंकि इससे उन लोगों को भोजन मिलता है जो प्रतिदिन अन्न की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं या जिनके पास अन्न नहीं होता है। ऐसे लोगों को भंडारे के माध्यम से शुद्ध भोजन कराने से पुण्य मिलता है।

   डॉ. ढींडसा ने कहा कि जेसीडी विद्यापीठ सामाजिक  भलाई के कार्यों के साथ-साथ अपना नैतिक दायित्व भी निभाता रहा है। इसी के चलते जेसीडी विद्यापीठ समय-समय पर जनसेवा के कार्य करता आ रहा है। जरूरतमंदों को कंबल व जर्सी वितरण , रक्तदान शिविर, पौधरोपण के अलावा भंडारों का आयोजन कर अपने सामाजिक व नैतिक दायित्वों का निर्वहन करता आ रहा है। उन्होंने कहा कि समाजसेवा का यह क्रम आगे भी लगातार जारी रहेगा।

     डॉक्टर ढींडसा ने कहा  कि भंडारे की परंपरा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है। हालांकि अब इसका स्वरुप बदल गया है। प्राचीन काल में यह अन्नदान के रुप में जाना जाता है। अन्नदान का उल्लेख शास्त्रों और पुराणों में कई स्थानों पर किया गया है। राजे-महाराजे यज्ञ, हवन और धार्मिक अनुष्ठान करवाते रहते थे। इनमें गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन और वस्त्र बांटा करते थे। आज वही परंपरा भंडारे के रुप में विकसित हो गई।शास्त्रों में बताय गया है कि संसार में सबसे बड़ा दान अन्न दान है। अन्न से ही यह संसार बना है और अन्न से इसका पालन हो रहा है। अन्न से शरीर और आत्मा दोनों की ही संतुष्टि होती हैं। इसलिए अन्न दान सभी प्रकार के दान से उत्तम है। इस भंडारे के आयोजन में  नरेंद्र , राम माली, निर्मल सिंह का विशेष योगदान रहा।

     डॉक्टर ढींडसा ने  कहा कि मकर संक्रांति से ही सूर्य भगवान दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। आज से ही धनु राशि का मकर राशि में संक्रमण होता है। आज के दिन से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस पर्व पर उड़द व तिल की खिचड़ी खाने का प्रावधान है। आज के दिन पवित्र नदियों में स्नान की परंपरा है।