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जनता के लिए कष्टदायी बनी कष्ट निवारण समिति: कुमारी सैलजा

जिलों में बैठक लेने को लेकर गंभीर नहीं प्रदेश सरकार के मंत्री
 
 
State government ministers not serious about holding meetings in districts

चंडीगढ़। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष  कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के मंत्रियों के कार्य-कलापों के कारण जिलों में गठित कष्ट निवारण समितियां जनता के लिए कष्टदायी बन गई हैं। इन समितियों की बैठक न होने के कारण जनता की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है। किसी जिले में साल भर से बैठक नहीं हुई है तो कहीं साल में बस दो बार ही बैठक हुई है। ऐसा सरकार में आपसी खींचतान व मंत्री में जनता के जाने की हिम्मत न होने के कारण हुआ है।


मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि महिला कोच के यौन उत्पीडऩ के आरोपी राज्यमंत्री संदीप सिंह के पास कैथल व फतेहाबाद जिले का प्रभार है, लेकिन एक साल से वे दोनों ही जगह बैठक नहीं कर पाए हैं। मुख्यमंत्री भले ही संदीप सिंह को बचाने की भरसक कोशिश करते रहें, लेकिन आत्मग्लानि के कारण संदीप सिंह मीटिंग नहीं ले पा रहे हैं। महिला कोच के आरोप चंडीगढ़ पुलिस की जांच में भी सही साबित हो चुके हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हिसार जिले का प्रभार गृह मंत्री अनिल विज के पास है। उनका सरकार के साथ अक्सर 36 का आंकड़ा रहता है, इसलिए वे बैठकें न लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करते रहते हैं। इसी चक्कर में उन्होंने साल भर में सिर्फ दो बार ही हिसार आकर बैठक ली है। ऐसा ही सिरसा व नूंह जिले के साथ हो रहा है। सिरसा जिले में साल में तीन बार तो नूंह जिले में चार बार ही कष्ट निवारण समिति की बैठक हुई हैं।


कुमारी सैलजा ने कहा कि नियमों के अनुसार कष्ट निवारण समिति की बैठक महीने में एक बार जरूर होनी चाहिए। इस बैठक में जनता की ऐसी दिक्कत रखने का प्रावधान है, जिनका आम तौर पर हल नहीं निकल पाता। मंत्री को भी इसलिए ही इनका प्रभारी बनाया जाता है, ताकि वे विभागों के बीच सामंजस्य स्थापित कर जनता की शिकायतों का निदान कर सकें। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब मंत्री बैठक लेने में असमर्थ होते हैं तो फिर संबंधित जिले के डीसी को बैठक लेने का अधिकार रहता है, लेकिन गठबंधन सरकार के मंत्री इसे खुद ही शक्तियां कम होने की तरह देखते हैं। और, इसलिए ही संबंधित डीसी को कष्ट निवारण समिति की बैठक लेने की इजाजत नहीं देते। इससे दिक्कत आम जनता को होती हैं और उनकी शिकायत व समस्याएं लगातार सुनवाई के अभाव में पेंडिंग चलती रहती हैं।