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इतिहास की वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करवाने में संग्रहालयों की भूमिका महत्वपूर्ण: डा. प्रवीण कुमार

The role of museums is important in providing scientific information about history: Dr. Praveen Kumar
 
The role of museums is important in providing scientific information about history: Dr. Praveen Kumar

Mhara Hariyana News, Sirsa
सिरसा। किसी भी विधा में आगे बढऩे के लिए इतिहास की आवश्यकता होती है। प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली मानव जाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है। इतिहास का समग्र ज्ञान होने से भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।

The role of museums is important in providing scientific information about history: Dr. Praveen Kumar

अत: इतिहास की वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करवाने में संग्रहालय की महत्वपूर्ण योगदान है। उक्त बातें पुराने विवेकानंद स्कूल के सभागार में भारतीय इतिहास संकलन समिति सिरसा द्वारा संग्रहालय-इतिहास लेखन की प्रमाणिक स्त्रोत विषय पर आयोजित कार्यक्रम में चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के इतिहास विषय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रवीण कुमार ने व्याख्यान देते हुए कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य सतीश मित्तल ने की।


डा. प्रवीण कुमार ने आगे बताया कि प्राचीन भारत में शिक्षा एवं ज्ञान के केंद्र विश्वविद्यालय जैसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशीला आदि स्थापित थे, इन्हीं विश्वविद्यालयों में संग्रहालय एवं पुस्तकालयों की विशेष व्यवस्था रही। जिन्हें विदेशी आक्रांताओं द्वारा समय-समय पर नष्ट कर दिया गया। आधुनिक भारत में अंग्रेजी शासन काल में सन 1784 में विलियम जोंस की अध्यक्षता में एशिया टिक सोसायटी की स्थापना की गई। 19वीं शताब्दी के आरंभ में इस्ट इंडिया कंपनी ने लंदन में भारत से भेजी गई पुरानी पुस्तकों और हस्तलिखित पौथियों जो वहां अंग्रेजी कर्मचारियों द्वारा अपने घरों में संग्रहित किए गए थे, को इकट्ठा कर एक संचयागार जिसका नाम ओरियंटल रिपोजिटरी रखा गया। जो 19वीं शताब्दी के मध्य में इंडियन म्यूजियम ऑफ फाइन एंड इंडीस्ट्रयल आर्टस के रूप में जानी गई। उन्होंने बताया कि 1819 में भारत में कलकता में एशियाटिक सोसायटी ने ओरियंटल म्यूजियम ऑफ एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की, जो 1866 में इंडियन म्यूजियम कहा गया और 1875 में अपने नए भवन में स्थापित करके 1876 में जनता को सौंपा गया। ये भारत का पहला संग्रहालय था। डा. सत्यप्रकाश के अनुसार आज की आवश्यकता है कि शिक्षा सकारात्मक हो, नकारात्मक नहीं हो और जीवन व्यापार की तरफ उन्मुख हो। इसकी प्राप्ति तभी हो सकती है, जबकि प्रदृश्यों को रूचिकर और कलात्मक रूप में सजाकर रखा जाए कि दर्शक उनकी ओर आकर्षित हो सकें। यही एक सामान्य बंधन है, जो संग्रहालयों से निहित संपूर्ण सामग्रियों को एक में मिले होने से उसे संग्रहालय का नाम दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि 1949 ई. में राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में की गई और अपने नए भवन में 1955 ई. में स्थापित हुआ और दिसंबर 1960 में जनता के लिए खोल दिया गया। भविष्य में निम्न प्रकार के संग्रहालयों की स्थापना की अपेक्षा समाज से की जा सकती है, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कृषि संग्रहालय, विद्यालयों में कला और पुरातत्व संग्रहालय, वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी और व्यक्तिगत संग्रहालय। इसी दौरान परिचर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें सेवानिवृत मेजर सूबे सिंह शर्मा प्राचार्य, रमेश जींदगर, नरेंद्र गुप्ता, डा. शीला पूनियां, पूजा छाबड़ा, कृष्ण वोहरा, डीएन अग्रवाल ने भाग लिया। मंच संचालन जिलाध्यक्ष सुभाष चंद्र शर्मा ने किया।
उपरोक्त विषय का विश्लेषण डा. केके डूडी द्वारा किया गया एवं आगुंतक बंधुओं का धन्यवाद राजेंद्र नेहरा ने किया। इस मौके पर नव युवा इतिहासकार विपिन शर्मा का परिचय संस्था के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष रामसिंह यादव ने करवाया और सभी ने करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया। संस्था के प्रवक्ता द्वय गंगाधर वर्मा एवं जयंत शर्मा ने बताया कि इसके पश्चात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला प्रचारक सीए कमल कुमार ने पाथेय पर अपने विचार रखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना एवं उसके अनुषांगिक संगठनों यथा सेवा भारती, संस्कार भारती, विद्या भारती, आरोग्य भारती, भारतीय इतिहास संकलन योजना, अधिवक्ता परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, दुर्गावाहिनी, भारतीय मजदूर संघ आदि की स्थापना एवं कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। इस अवसर पर ओम बहल, सतीश कंदोई, दिनेश राय टांटिया एडवोकेट, सुखविंद्र सिंह दुग्गल, सुरंेद्र जोशी, राजेंद्र शर्मा, सुभाष बजाज, सचिव सूर्यप्रकाश शर्मा उपस्थित थे।