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MCD चुनाव तो हारे पर BJP पलट सकती है मेयर की बाजी, यूं बदल सकता है समीकरण

नए मेयर को चुनने के लिए तकनीकी रूप से किसी भी तरह के चुनाव की जरूरत नहीं होती है.
 
MCD चुनाव तो हारे पर BJP पलट सकती है मेयर की बाजी, यूं बदल सकता है समीकरण
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दिल्ली नगर निगम (MCD) के चुनाव में 250 वॉर्ड में से 134 वॉर्ड पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने जीत हासिल की. इसके बावजूद बीजेपी का मानना है कि राजधानी में नए मेयर का चुनाव अब भी खुली रेस की तरह है. बीजेपी के आईटी विभाग के हेड अमित मालवीय ने बुधवार को इस मसले पर एक ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, ‘दिल्ली के नए मेयर के चुनाव की दौड़ इस बात पर तय है कि मनोनीत पार्षद किस तरह मतदान करते हैं.’


उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि इस साल (2022) की शुरुआत में चंडीगढ़ में नगर निगम चुनाव हुए थे, जिनमें आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इसके बावजूद चंडीगढ़ नगर निगम में बीजेपी का मेयर है.

दिल्ली में कैसे होता है मेयर का चुनाव?
दिल्ली नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) अधिनिमय के मुताबिक, हर नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में नगर निगम को एक साल के लिए नए मेयर का चुनाव करना होता है. नियम के मुताबिक, पहला कार्यकाल एक महिला को सौंपा जाता है और तीसरे कार्यकाल के जिम्मेदारी पार्षदों में मौजूद अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति को दी जाती है. नए मेयर को चुनने के लिए तकनीकी रूप से किसी भी तरह के चुनाव की जरूरत नहीं होती है.

एमसीडी चुनाव जीतने वाली पार्टी हर साल मेयर पद के लिए एक उम्मीवार खड़ा करती है. यदि विपक्ष की ओर से कोई विरोध नहीं होता है तो उसे मेयर बना दिया जाता है. हालांकि, दिल्ली नगर निगम में इस वक्त विपक्ष में बीजेपी है और वह मेयर पद के लिए अपना उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला करती है तो चुनाव होना तय है. इस चुनाव के लिए निर्वाचित पार्षद मतदान करते हैं.

पार्षदों के अलावा दिल्ली विधानसभा के 14 विधायकों के साथ-साथ राज्यसभा और लोकसभा के 10 सदस्य भी इस चुनाव में मतदान करने के पात्र होते हैं. अगर मतदान के दौरान वोट बराबर रहते हैं तो चुनाव की निगरानी के लिए तैनात विशेष आयुक्त खास ड्रॉ आयोजित करते हैं. यह बात ध्यान देने लायक है कि मेयर गुप्त मतदान प्रक्रिया के तहत चुने जाते हैं, जिससे यह बताना नामुमकिन होता है कि किसने किसे वोट दिया.

दिल्ली में मेयर के पास क्या जिम्मेदारियां होती हैं?
भूमिका के औपचारिक पहलुओं से परे दिल्ली का मेयर सबसे पहले और सबसे अहम होता है. साथ ही, दिल्ली नगर निगम की सभी बैठकों का पीठासीन अधिकारी होता है. मेयर के पास कई शक्तियां भी होती हैं. अगर किसी प्रस्ताव पर वोटिंग बराबरी पर छूटती है तो मेयर दूसरा वोट देकर काम शुरू करा सकता है. दिल्ली नगर निगम की महीनेभर में एक अनिवार्य बैठक से इतर मेयर के पास विशेष बैठक बुलाने के अधिकार भी होते हैं. पीठासीन अधिकारी के रूप में मेयर बेहद खराब व्यवहार करने वाले पार्षदों को बैठक से निकालकर दंडित कर सकता है या उन्हें 15 दिन के लिए निलंबित करके बैठक में शामिल होने पर रोक लगा सकता है.

खुद बुलाई बैठकों की बात करें तो गंभीर अव्यवस्था होने की स्थिति में मेयर के पास उन बैठकों को स्थगित करने का अधिकार होता है. साथ ही, उसके पास उन सवालों को भी नामंजूर करने की भी शक्ति होती है, उनकी राय में जिन्हें बैठक के दौरान पूछने पर दिल्ली नगर निगम अधिनियम में बताए गए प्रावधानों का उल्लंघन होता है.

मेयर के चुनाव में कैसे जीत सकती है BJP?
जैसा कि ऊपर बताया गया, मेयर को गुप्त मतदान के तहत चुना जाता है. ऐसे में यह बताना नामुमकिन होता है कि किस पार्षद ने किस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया. गौर करने वाली बात यह है कि नगर पालिका चुनावों पर दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है. इसका मतलब यह है कि कोई भी पार्टी अपने पार्षदों को एक निश्चित तरीके से मतदान करने के लिए व्हिप जारी नहीं कर सकती है. ऐसे में अनुमान है कि बीजेपी अपने मेयर प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए गैर-बीजेपीई पार्षदों को अपने पाले में ला सकती है.

आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया इस मामले में एक ट्वीट भी कर चुके हैं. उन्होंने दावा कि बीजेपी ने नगर निगम चुनाव में जीत हासिल करने वाले उनके उम्मीदवारों से बातचीत शुरू कर दी है. सिसोदिया के मुताबिक, उन्होंने अपने विजयी उम्मीदवारों से कहा कि वे इस तरह के ऑफर्स पर ध्यान न दें, बल्कि कॉल रिकॉर्ड करें. बीजेपी ने इस आरोप को सिरे से नकार दिया. पार्टी के नेताओं का कहना है कि इस तरह के दावे करना आम आदमी पार्टी की आदत है.