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शिव भक्त है नव निर्वाचित राष्ट्रपति द्रौप्रदी मुर्म, नहीं खाती लहसून - प्याज

राष्ट्रपति भवन की रसोई में पकेगा 'पखाल और सजना का साग'
 
 
Newly elected President Draupadi Murm

Mhara Hariyana News, New Delhi।

 नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भगवान शिव की भक्त हैं वे लहसून प्याज नहीं खाती।

यह भी संयोग है कि सावन के पहले सोमवार को चुनाव के लिए मतदान हुआ और अब दूसरे सोमवार को वे शपथ ले रही है।

उनके गांव में उनके बारे में एक बात प्रसिद्ध् है कि  - द्रौपदी सब कुछ छोड़ सकती हैं, लेकिन अपने शिव बाबा का ध्यान नहीं।

मुर्मू की  पोती सुनीता मांझी कहती हैं,' वह सुबह 3-4 बजे के बीच जाग जाती हैं। उनके रूटीन में मॉर्निंग वॉक, योग और शिव की पूजा शामिल है। वह कभी भी अपनी पूजा मिस नहीं करती हैं।

साल 2013 में बड़े बेटे की मौत के बाद द्रौपदी डिप्रेशन में चली गई थीं। इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया और शिवभक्त बन गईं। इतना ही नहीं उन्होंने नॉनवेज खाना भी छोड़ दिया। अब तो वे लहसुन-प्याज भी नहीं खाती हैं।


घर आने से पहले द्रौपदी फोन कर देती हैं कि पखाल और सजना का साग बना के रखना
उनकी पुत्रवधु कहती हैं,'वह जब भी यहां आती हैं, पहले फोन कर देती हैं कि पखाल और सजना का साग बनाना।' पखाल यानी पानी का भात और सजना यानी सहजन का साग। कई राज्यों में इसे मुनगा का साग भी कहते हैं।

द्रौपदी की भाभी शाक्य मुनी कहती हैं, 'वह वेजीटेरियन हैं। सुबह नाश्ते में जो भी घर में बनता है, खा लेती हैं। कुछ ड्राई फ्रूट्स उनके नाश्ते में जरूर रहते हैं। दोपहर में चावल, साग-सब्जी और रोटी खाती हैं। रात में कोई फ्रूट और हल्दी वाला दूध लेती हैं।'


राष्ट्रपति भवन में भी बिराजेंगे निरंकार शिव
द्रौपदी को उनके दुख भरे दिनों में ब्रह्मकुमारी की मुखिया सुप्रिया ही अध्यात्म के रास्ते पर लेकर आईं।

दरअसल द्रौपदी ने बड़े बेटे की मौत के बाद उन्हें घर बुलाया था। और पूछा था कि इस मुश्किल वक्त से कैसे निकलूं? तब सुप्रिया ने उन्हें ध्यान सेंटर पर आने की सलाह दी थी।

सुप्रिया बताती हैं,' द्रौपदी कहीं भी जाएं उनके साथ शिव बाबा के ध्यान के लिए ट्रांसलाइट और एक छोटी सी पुस्तिका रहती है। रायरंगपुर वाले घर से लेकर गवर्नर हाउस तक हर जगह द्रौपदी अपने लिए एक पूजा स्थल बनाती हैं। वहां शिव बाबा होते हैं।

बचपन से ही धाकड़ और बेबाक थीं द्रौपदी
जोगिंदर कहते हैं,’ द्रौपदी जितनी पढ़ने लिखने में अच्छी थीं, उतनी ही वह बेबाक भी थीं। लड़कियों की आपसी लड़ाई हो जाए तो निपटारे के लिए खुद आ जातीं और दोनों पक्ष उनके न्याय से संतुष्ट भी हो जाते थे।

इतना ही नहीं लड़के भी द्रौपदी से दूर ही रहते थे, वे उनसे उलझते नहीं थे। मैं तो उनसे दो साल सीनियर था। पढ़ते वक्त भी मेरा उनके घर आना-जाना रहा।’ 


द्रौपदी को 6-7 कक्षा में पढ़ाने वाले बासुदेव कहते हैं,' क्लास में लड़के ज्यादा लड़कियां बहुत कम। लिहाजा लड़कों को ही मॉनिटर बनाया जाता था, लेकिन जब द्रौपदी पढ़ने आई, तो मॉनिटर बनने की दोनों शर्त जीत ली। पढ़ने में सबसे बेहतर और डिसिप्लिन मेंटेंन रखने में भी माहिर।'