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Varalakshmi Vrat kya hai: जानिए कब रखा जाएगा वरलक्ष्मी व्रत, इसका महत्व, कथा और अन्य जानकारी

Varalakshmi Vrat: Know when Varalakshmi Vrat will be kept, its importance, story and other information
 
Varalakshmi Vrat

Mhara Hariyana News

Varalakshmi Vrat kya hai


हर बार सावन मास के आखिरी शुक्रवार को मां वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाता है.Varalakshmi Vrat kya hai

Varalakshmi Vrat kya haiये व्रत सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है. इस बार वरलक्ष्मी व्रत 12 अगस्त को रखा जाएगा. जानिए व्रत से जुड़ी खास बातें.Varalakshmi Vrat


जानिए कब रखा जाएगा वरलक्ष्मी व्रत, इसका महत्व, कथा और अन्य जानकारीशास्त्रों में मां वरलक्ष्मी के रूप को बेहद आकर्षक बताया गया हैVaralakshmi Vrat

श्रावण मास का आखिरी शुक्रवार बहुत खास माना जाता है. सावन का आखिरी शुक्रवार मां वरलक्ष्मी को समर्पित होता है.Varalakshmi Vrat

माना जाता है कि मां वरलक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर से हुई थी. शास्त्रों में मां वरलक्ष्मी के रूप को बेहद आकर्षक बताया गया है.Varalakshmi Vrat

उनके रूप की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मां वरलक्ष्मी निर्मल जल की तरह दूधिया रंग वाली हैं और सोलह श्रंगार और आभूषणों से सुसज्जित हैं.Varalakshmi Vrat

मान्यता है कि मां वरलक्ष्मी का ये व्रत रखने से अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.Varalakshmi Vrat

व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता की छाया भी दूर हो जाती है और उसकी पीढ़ियां भी लंबे समय तक सुखी जीवन बिताती हैं.

इस बार वरलक्ष्मी व्रत 12 अगस्त को पड़ रहा है. यहां जानिए इस व्रत से जुड़ी जरूरी बातें.


वरलक्ष्मी व्रत के दिन सावन पूर्णिमा का संयोग
इस बार वरलक्ष्मी व्रत का महत्व कहीं ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि वरलक्ष्मी व्रत के साथ सावन मास की पूर्णिमा का भी संयोग बन रहा है.

इसके साथ ही इस दिन सुबह 11 बजकर 34 मिनट तक सौभाग्य योग है और उसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा.

धार्मिक रूप से इन दोनों ही योग को शुभ माना जाता है. पूजा के हिसाब से शुभ समय सुबह 06ः14 से 08ः32 बजे तक, दोपहर में 01ः07 बजे से 03ः26 बजे तक और शाम में 07ः12 बजे से रात 08ः40 बजे तक रहेगा.

व्रत का महत्व
वरलक्ष्मी व्रत की दक्षिण भारत में विशेष मान्यता है. इस व्रत को सुहागिन महिलाएं और शादीशुदा पुरुष ही रख सकते हैं. माना जाता है कि ये व्रत अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान पुण्यदायी माना गया है. इस व्रत को रखने से गरीबी दूर हो जाती है और परिवार में सौभाग्य, सुख और संतान सब कुछ प्राप्त होता है. इस व्रत का पुण्य लंबे समय तक बना रहता है और इसके प्रभाव से पीढ़ियां भी खूब फलती-फूलती हैं.

व्रत के दौरान ऐसे करें पूजा
शुक्रवार के दिन सुबह स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प लें. पूजा के लिए एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी और गणेश भगवान की प्रतिमा रखें. इसके बाद भगवान को कुमकुम, चंदन, इत्र, धूप, वस्त्र, कलावा, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करें. गणपति के समक्ष घी का और माता को सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इसके बाद गणपति का नाम लें और उनके मंत्र का जाप करें. फिर मां वरलक्ष्मी की पूजा शुरू करें. इसके बाद मां लक्ष्मी के मंत्र का कमलगट्टे या स्फटिक की माला से जाप करें. वरलक्ष्मी व्रत कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद आरती करें.

वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मगध देश में कुंडी नामक एक नगर था. इस नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी. चारुमती मां लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी और हर शुक्रवार को माता के लिए व्रत रखती थी. एक दिन माता लक्ष्मी उसके सपने में आयीं और उससे कहा कि वो सावन के महीने में पूर्णिमा से पहले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी का व्रत रखे. चारुमती ने मां का आदेश मानकर वो व्रत किया. जैसे ही व्रत का समापन हुआ चारुमती की किस्मत ही पलट गई. उसके शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए और उसका घर धन धान्य से भर गया. चारुमती को देखकर क्षेत्र की बाकी महिलाएं भी इस व्रत को रखने लगीं. धीरे-धीरे इस व्रत का चलन दक्षिण भारत में बढ़ गया और इसे धन-धान्य प्रदान करने वाला व्रत माना जाने लगा.