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श्री बाबा तारा जी की समाधि पर शीश नवाने से होती है हर मनोकामना पूरी

अनंत कोटि ब्रहमांडनायक, योगीराज ब्रहमलीन श्री बाबा तारा जी के 20 वें परिनिर्वाण दिवस पर विशेष
 
 
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हर शिवरात्रि पर होने वाले भंडारे में जुटते है लाखों श्रद्धालु 

सिरसा । धर्म नगरी सिरसा संतों, महात्माओं और धर्मात्माओं की कर्म और जन्म भूमि रही है। संतों की चरणरज से पावन हुई इस धरा के स्पर्शमात्र से मन को अपार शांति और सुख की अनुभूति होती है। डेरों की नगरी सिरसा ने  दुनिया को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया है़ और मानवता को मजबूत किया है  साथ ही लोगों के  जीवन को संस्कारों से परिपूर्ण किया है। यही वजह है कि सिरसा के लोगों को मानवता का पुजारी कहा जा सकता है। ऐसे ही संत श्री बाबा तारा जी  का आशीर्वाद सिरसा के लोगों पर बना हुआ है। उनके स्मरण मात्र से मन को परमशांति का आभाष होता है। सच तो है कि श्री बाबा तारा जी की समाधि पर श्रद्धापूर्वक शीश नवाने से सारे कष्ट और दर्द दूर हो जाते है। आज श्री बाबा तारा कुटिया विश्व के दर्शनीय स्थलों में शुमार है। कुटिया किसी भी मायने में तीर्थ स्थल से कम नहीं हैं।


पंजाब और राजस्थान सीमा से सटे सिरसा के रानियां रोड पर बांदरों वाली पुलिया से कुछ आगे चलकर श्री बाबा तारा जी की कुटिया है।  यह क्षेत्र श्री तारा बाबा की चरणरज से पवित्र हुआ है।  फाल्गुन मास की शिवरात्रि के दिन जिला हिसार की तहसील हांसी के गांव पाली में श्रीचंद सैनी के घर तारा बाबा का जन्म हुआ।  दो वर्ष की उम्र में इनके  माता पिता का देहावसान हो गया। ऐसे में उनका लालन पालन उनकी बुआ और फुफा के घर सिरसा जिला के गांव रामनगरियां में हुआ।

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जब वे किशोरावस्था में थे तो उनके फूफा और बुआ उनके विवाह के बारे में सोच रहे थे कि उन्होंने सांसारिक मोह माया का त्याग करते हुए श्री सिद्ध बाबा बिहारी जी की सेवा करनी शुरू कर दी। बाबा बिहारी जी के मार्ग दर्शन में उन्होंने घोर तप किया। बाबा बिहारी जी के आदेश पर उन्होंने उनके शिष्य श्री बाबा शयोरामजी से दीक्षा ग्रहण की।

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दीक्षा ग्रहण करने के बाद बाबा जी ने सिरसा छोड़ दिया और हिसार के बीहड़ जंगलों में जाकर डेरा डाल लिया जहां पर उन्होंने घोर तप किया। बाबा जी के जाने के बाद रामनगरियां के लोग हिसार के जंगलों में पहुंचे और बाबा जी से सिरसा लौटने का अनुरोध किया। बाबा ने ग्रामीणों की प्रार्थना को स्वीकार किया। जब बाबा नौ वर्ष के थे उन्होंने सिरसा में रामनगरियां के समीप जंगलों में कुटिया बनाकर तपस्या शुरू की और शिवसाधना में लगे रहे। उन्होंने अपने सद्कर्म से  सिरसा धरा को एक तपोभूमि बनाकर  रख दिया। बाबा को एकांत पसंद था और वे अधिकतर समय शिव साधना में लीन रहते थे। उनकी कुटिया में रात को न तो कोई भक्त रूकता था और न ही कोई रक्षक होता था क्योंकि वे मानते थे कि भगवान शिव के भक्त की रक्षा तो स्वयं भगवान शिव करते हैं। बाबा केवल लंगोट धारण करने के  साथ साथ एक चादर बदन पर डालकर रखते थे। वे 24 घंटे में खाने के नाम पर केवल एक रोटी और लाल मिर्च की बनी चटनी का ही सेवन करते थे।

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बाबा जी ने लंबे समय तक मौन धारण किए रखा और करीब 12 साल तक बिना अन्न के शिव तपस्या करते हुए सिद्धी प्राप्त की। बाबा तारा जी के पास भक्तों को परखने वाली दिव्य दृष्टि थी। वे मन की आंखों से ही अपने सच्चे श्रद्धालु को पहचान लेते थे। हर फाल्गुन और श्रावण मास की शिवरात्रि पर श्री बाबा तारा जी शिवधाम, नीलकंठ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नीलधरा, रामेश्वरम, उज्जैन और सभी ज्योर्तिलिंग की धार्मिक यात्रा पर जाया करते थे। 20 जुलाई 2003 को बाबा जी अपने सेवकों के साथ हरिद्वार गए और 26 जुलाई को हरिद्वार के गंगाघाट आश्रम में पहुंचे। 27 जुलाई को उन्होंनें सेवको को भोजन करवाया और बाद में कमरे से बाहर आकर गंगाघाट पर स्थित शिवालय के निकट रात्रि 12.05 बजे अपने सेवकों के हाथों में अपनी देह को त्याग दिया। श्री बाबा तारा के अन्नय भक्त गोपाल कांडा जो इस दृश्य के प्रत्यक्षदर्शी थे उनका कहना है कि महानसंत से अंतरलीन होने के लिए गंगा तट का चयन किया। बाद में उन्हें रानियां रोड स्थित कु टिया परिसर में श्री बाबा तारा जी को समाधि दी। आज उनका समाधि स्थल भव्य रूप से बनाया है।

बाबा जी की सारी यादों को सहेज कर ज्यों का त्यों रखा हुआ है। सुबह शाम विधिवत रूप से पूजा अर्चना होती है।
श्री बाबा तारा जी के परमभक्त सिरसा के विधायक, पूर्व गृहराज्यमंत्री गोपाल कांडा और उनके अनुज गोबिंद कांडा ने कुटिया में विशाल शिवालय की स्थापना करवाई। यह शिवालय 71 फुट ऊंचा है जबकि भगवान शिव की प्रतिमा  108 फुट की है। पवित्र गुफा निर्माण करवाया गया है। जिसमें 12 ज्योर्तिलिंग के साथ साथ अन्य देवी देवाताओं की प्रतिमा  और झांकियां है। कुटिया को आज श्री तारकेश्वर धाम  के नाम से जाना जाता है। गोबिंद कांडा कुटिया के  मुख्य सेवक है।  कुटिया में प्रतिवर्ष बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन जैसे कथा और भजन संध्या का होते रहते है। दोनों शिवरात्रियों पर विशाल भंडारे आयोजित किए जाते है।  आज कुटिया विश्व में अपनी पहचान बना चुकी है, देश और विदेश से श्रद्धालु यहां  बाबा की समाधि पर शीश नवाते  है। लोगों की मान्यता है कि बाबा के दर पर सिर झुकाने से सभी की  झोली भर जाती है। श्री बाबा तारा का लोगों पर हर समय आशीर्वाद बना रहता है। श्री बाबा तारा के तीसरे परिनिर्वाण दिवस पर कुटिया में अतिरूद्र महायज्ञ का 251 वेद पाठियों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ किया गया। भारत के इतिहास में ऐसा आयोजन पहली बार हुआ। इस महायज्ञ का शुभारंभ जूना पीठाधीश्वर, महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज ने किया था।


श्री बाबा तारा जी कुटिया अपने आप में बाबा जी का ही वरदान है। कुटिया परिसर में जैसे ही व्यक्ति के कदम पड़ते है वह पूरी तरह से धार्मिक हो जाता है, कुटिया के भव्यता  देखकर वह स्वयं ही बाबा तारा जी के जयकारे लगाने लगता है।  समाधि पर बाबा जी का ध्यान करने मात्र से परमसुख की अनुभूति होती है, मन शांत होता है। बाबा की समाधि पर शीश नवाने की हर मनोकामना पूर्ण होती है और बाबा जी के आगे जो भी आया उसकी झोली भर जाता है। हजारों ऐसे परिवार है जिन पर बाबा जी की असीम कृपा रही है उनमें से कांडा परिवार एक है। कांडा परिवार का हर सदस्य बाबा जी के बताए और दिखाए रास्ते पर चल रहा है, कांडा परिवार जनसेवा का दूसरा नाम बन चुका है। इस परिवार को जनसेवको का परिवार भी कहा जाता है।