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जैन समाज ने धूमधाम से मनाया सम्वतसरी महापर्व

क्षमा सबसे बड़ा बल, सही जगह पर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही यह सर्वशक्तिमान है: महासाध्वी करूणा जी महाराज 
 
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रानियां में हुए 108 पोषध व्रत, अठाई तप करने वालों को किया सम्मानित

रानियां, 20 सितंबर ।

स्थानीय जैन धर्मशाला में सम्वतसरी महापर्व हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया गया। जैन श्रावकों द्वारा पर्व के उपलक्ष्य में पोषध व्रत, उपवास, आयंबिल, एकाशना तप किए। इस अवसर पर जैन धर्मशाला में चार्तुमास हेतू विराजमान कुसुमलता जी महाराज की सुशिष्याएं करूणा जी महाराज, चित्रा जी महाराज व डा. निवेदिता जी महाराज आदि ठाणे-3 ने कहा कि सबसे बड़ा बल क्षमा है यदि इसका सही ढंग से सही जगह पर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही यह सर्वशक्तिमान है। महासाध्वी करूणा जी महाराज आज रानियां की जैन धर्मशाला में सम्वतसरी महापर्व पर को मंगल पाठ सुना रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रयुषण पर्व का अंतिम दिन सम्वतसरी होता है। सम्वतसरी महापर्व पर श्रावक-श्राविकाएं तपस्या, आराधना व पौषध व्रत आदि करते है। प्रयुषण पर्वो में की गई तपस्या से आत्मशुद्धि होती है तथा शरीर कुन्दन के समान हो जाता है।

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उन्होंने कहा कि जैसे सुनार सोने को तेजाब व तप में डालकर कुंदन बना देता है ऐसे ही इंसान भी अपने आप को जप-तप में लगाकर कुन्दन के समान बन सकता है। जैन संतों ने सम्वतसरी महापर्व पर श्री अंत कृत दशांग सुत्र के आठों वर्गो को पुरा किया और कहा कि अंत कृत दशांग सूत्र ऐसा है जिससे 90 महापुरुषोंं का वर्णण आता है जिसमेंं  उन्होंने रत्नावली, मुक्तावली, वर्धमान आयंबिल तप सहित अनेक प्रकार के तपों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अंत कृत दशांग सूत्र में अनेक साधू-साध्वियों का भी वर्णन आता है जो अपना राजपाठ छोड तपस्या के रास्ते में लग कर मोक्ष को प्राप्प्त हुए। जिसमेंं 57 पुरुष तथा 33 महिलाओं ने मोक्ष प्राप्त किया। यह सूत्र आर्य श्री सुधर्मास्वामी जी म.सा. अपने शिष्य आर्य श्री जम्बूस्वामी जी म.सा. को सूनाते है। जिसमें तीर्थंकर भगवान अरिष्ठनेमी व भगवान महावीर स्वामी जी की द्वारा बताए गए मार्ग का वर्णन आता आता है। इस मौके पर युवती मंडल के सदस्योंं व छोटे बच्चोंं द्वारा नाटिकाएं प्रस्तुत की वहीं अनेक श्रावकोंं ने भजनों के माध्यम से प्रभु का गुणगान किया। 

 

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इस अवसर पर श्रावकोंं ने लगभग 108 पोषध व्रत किये। जिसमेंं पुरा दिन-रात बिना कुछ पिए सफेद कपड़े पहन कर मुखवस्त्रिका लगा कर जैन सभा मेंं रहे। इस दौरान रविन्द्र जैन, बबी जैन, रमा जैन, सपना जैन, आदित्य जैन, कुलभूषण जैन, श्यामसुंदर कालडा सहित अनेक श्रावकोंं ने संतवसरी पर्व पर भजन प्रस्तुत किए। वहीं रानियां अठाईयां (गर्म जल के अधार पर आठ दिन) व आयम्बिल अठाईयां (एक समय रूखे-सुखे भोजन सहित आठ दिन), एकाशना व्रत(केवल एक समय भोजन करना) करने वालों को श्री संघ द्वारा सम्मानित किया गया। प्रयुषण पर्व को लेकर आठ दिनों तक दिन-रात महामंत्र नवकार का अंखड जाप किया गया।  

 

बतां दे कि संवतसरी पर्व पर जैन समाज के लोगों ने आठ दिन तक कोई फल, मिठाई एवं बाह्यï व्यंजनों का प्रयोग नहीं किया जाता तथा घर में पका सादा भोजन एवं उबले पानी का सेवन किया जाता है। श्रावक साधु-साध्वियों का व्याख्यान सुनते हैं, प्रतिक्रमण और सामयिक करते हैं। श्रावक इन पर्व के दिनों में भौतिक व्यामोह को भुलाकर आध्यात्मिक लोक में विचरण करते हैं, कोई तपस्या करता है, कोई शास्त्र स्वाध्याय करता है, कोई दया पालता है, कोई दान करता है, कोई ब्रह्मïचर्य का पालन करता है, कोई अपने कषायों की शांति करने में जुटता है। पुराने वैर-विरोध और आपसी मनमुटावों की कालिमा को धोकर आत्मा को शांत, प्रसन्न और निरवैर बनाने की चेष्टा करता है। इस प्रकार यह पर्व मोक्ष के चार अंगों की बहुमुखी आराधना-उपासना का एक पवित्र त्यौहार बन जाता है। इस अवसर पर जैन सभा के बहादुर चंद जैन, विनोद जैन, सुरेंद्र मोहन जैन, प्रेम जैन, चंदर जैन, जगरूप लाल जैन, राजकुमार जैन, अनिल जैन एडवोकेट, नरेश जैन एडोवाकेट, कुलभूषण जैन, सुरेंद्र जैन, गणेश जैन, घंटी जैन, माशा जैन, मुकेश जैन, योगेश जैन, साहिल जैन, हिमांशु जैन, हर्ष जैन, अदीस जैन, नेमचंद जैन, रविंद्र जैन, बंटी जैन, अनिल जैन, विप जैन, रजनीश जैन, मुल्ख राज पटवारी, वैद प्रकाश चचन, सतपाल आहूजा, कालू मेहता, ओमप्रकाश भगत, केशव जैन, दिनेश जैन, मोहन लाल जैन सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।