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आज है अधिक मास की एकादशी, व्रत से मिलता सालभर की सभी एकादशी का पुण्य

भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था अर्जुन को इस एकादशी का महत्व
 
आज है अधिक मास की एकादशी, व्रत से मिलता सालभर की सभी एकादशी का पुण्य

Mhara Hariyana News, New Dlehi: पुरुषोत्तम महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पुरुषोत्तमी एकादशी कहते हैं। इसका वर्णन पद्मपुराण में भी मिलता है। महाभारत में इसे सुमद्रा एकादशी कहा गया है। इसके अलावा आमतौर पर इसे पद्मिनी एकादशी भी कहते हैं। शनिवार को पुरुषोत्तमी एकादशी है और इसका विशेष महत्व है। 

ज्योतिषाचार्य के अनुसार तीन साल में आने वाली यह एकादशी बहुत ही विशेष होती है। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा और व्रत करने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस एकादशी को व्रत करने से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है। हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत अधिक मास में आता है। भगवान विष्णु को यह महीने समर्पित होने से ये व्रत और भी खास हो जाता है।

पुरुषोत्तमी एकादशी के बारे में सबसे पहले ब्रह्मा जी ने नारद जी को बताया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इसका महत्व बताया। इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत में दान का खास महत्त्व है। इस दिन मसूर की दाल, चना, शहद, पत्तेदार सब्जियां और पराया अन्न नहीं खाना चाहिए। इस दिन नमक का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए और कांसे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए। वहीं, पूरे दिन कंदमूल या फल खाए जा सकते हैं।

पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए।
तीर्थ स्नान न कर सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर नहा सकते हैं।
पानी में तिल, कुश और आंवले का थोड़ा सा चूर्ण डालकर नहाना चाहिए।
नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें और मंदिर में दर्शन करें।
भगवान के भजन या मंत्रों का पाठ करना चाहिए और कथा सुनें।
भगवान को नैवेद्य लगाकर सब में बांट दें और ब्राह्मण भोजन करवाएं।

पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत कथा
पुराने समय में महिष्मती नगर का राजा कृतवीर्य था। राजा की कोई संतान नहीं थी। राजा ने कई व्रत-उपवास और यज्ञ किए, लेकिन फायदा नहीं हुआ। इससे दुखी हो राजा जंगल में जाकर तपस्या करने लगा। कई साल तप में बीते, लेकिन उसे भगवान के दर्शन नहीं हुए। तब उसकी एक रानी प्रमदा ने अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया से पुत्र पाने का उपाय पूछा। उन्होंने पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत करने को कहा।
इस व्रत को करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे वरदान दिया कि तुझे ऐसा पुत्र मिलेगा जिसे हर जगह जीत मिलेगी। देव और दानव भी उसे नहीं हरा पाएंगे। उसके हजारों हाथ होंगे। यानी वो अपनी इच्छा से अपने हाथ बढ़ा सकेगा।
इसके बाद राजा के घर पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोक को जीतकर रावण को भी हराया और बंदी बना लिया। रावण के हर सिर पर दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा। उस महाबली को ही सहस्त्रार्जुन कहा जाता है।