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होली पर कंस की कुटाई क्यों करते हैं लोग, क्या है दुश्मनी की वजह?

Why do people beat Kansa on Holi, what is the reason for enmity?
 
होली पर कंस की कुटाई क्यों करते हैं लोग, क्या है दुश्मनी की वजह?
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होली की शुरुआत होलिका दहन से मानी जाती है, होलिका दहन का रिश्ता भक्त प्रह्लाद से है, वही प्रह्लाद जिन्हें हिरण्यकश्यपु के जुल्मों से बचाने के लिए खुद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था. यह बात थी त्रेता युग की, फिर द्वापर युग के कंस की होली पर कुटाई क्यों होती है?

कुटाई भी ऐसी कि पहले कंस को अधमरा किया जाता है और फिर जला दिया जाता है. इससे पहले शोभायात्रा भी निकाली जाती है. अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर इस दुश्मनी की वजह क्या है? आइए जानते हैं.

ऐसे शुरू हुई परंपरा
सब जानते हैं कि मथुरा में कंस का महल था, लेकिन वो जेल आगरा में थी जहां देवकी और वासुदेव को बंद रखा गया था. यहां के गोकुलपुरा में आज भी कंस गेट है जो उसी जेल का गेट बताया जाता है. इतिहासकार राज किशोर राजे के मुताबिक सैंकड़ो साल पहले यहां के लोगों ने इसी बात का गुस्सा निकालने के लिए कंस के पुतले को पीटकर-पीटकर मारने की परंपरा शुरू की. इसके लिए होली का दिन चुना गया. तब से आज तक यह परंपरा कायम है, होली खेलने के बाद लोग कंस का पुतला बनाकर शोभायात्रा निकालते हैं, फिर उसे पीटकर-पीटकर अंधमरा करते हैं और फिर उसमें आग लगा देते हैं.

शोभायात्रा में होते हैं कृष्ण-बलदेव
आगरा में गौड़ मंदिर के पास से यह शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें ग्वाल बाल के साथ कृष्ण-बलदेव भी होते हैं, कंस गेट पर पहुंचने के बाद लोग इस पर चढ़ जाते हैं और कंस की पिटाई शुरू कर देते हैं, पहले उसका सिर नीचे फेंका जाता है, फिर उसका धड़ फेंका जाता है और फिर इसे दहन कर दिया जाता है. कृष्ण-बलदेव के स्वरूप ही इसे दहन करते हैं.

सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा
आगरा के वरिष्ठ पत्रकार आदर्श नंदन गुप्त बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है, शोभायात्रा में लोग फाग गाते और गुलाल उड़ाते चलते हैं, हालांकि अब फाग की परंपरा सीमित हो गई है, लेकिन उत्साह अभी भी बरकरार है. पूरे भारत में सिर्फ आगरा में ही होली और कंस का ये कनेक्शन देखने को मिलता है, जो बेहद खास है. कंस के पुतले के दहन के बिना यहां की होली पूरी नहीं मानी जाती.