डिफेंस में बड़े खर्च की रूसी योजना से भारतीय उद्योगों को बड़ा फायदा हो सकता है
Mhara Hariyana News:
प्रतिबंधों से प्रभावित उद्योगों के लिए भारत से सामान खरीदने के रूस के अनुरोध के बाद अब रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने घोषणा की है कि उनके देश ने अपने रक्षा बजट में 50 प्रतिशत की भारी वृद्धि करने की योजना बनाई है. 2022-23 के लिए रूस का रक्षा बजट 63.6 बिलियन डॉलर है. लेकिन इस साल 24 फरवरी को शुरू हुए यूक्रेन युद्ध ने बजट को कई अरब बढ़ा दिया है. मीडिया आउटलेट वेदोमोस्ती के मुताबिक, 2022 में रक्षा खर्च 77 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. हालांकि पश्चिमी देशों का अनुमान है कि यह 100 अरब डॉलर के आस-पास हो सकता है.
यह साफ नहीं है कि शोईगू का अनुमान 63.6 अरब डॉलर के मूल बजट पर आधारित है या वास्तविक खर्च पर. मगर इस पर विचार नहीं करें तो भी यह एक बड़ी वृद्धि है. रूसी मीडिया के मुताबिक यह बढ़ोतरी रूस को अपने हथियार और हार्डवेयर को 97 फीसदी मुकाबले के लिए तैयार हालत में रखने के लिए की गई है.
घोषणा रूसी रक्षा मंत्रालय में एक बैठक के दौरान हुई
शोइगु की घोषणा रूसी रक्षा मंत्रालय में एक बैठक के दौरान हुई. इस मौके पर नोवोस्ती के मुताबिक रूसी हथियार निर्माताओं को अधिकतम उत्पादन क्षमता बनाए रखने और सेना को समय से पहले डिलीवरी सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है. शोइगु भी हथियारों के आधुनिकीकरण को जारी रखना चाहते हैं ताकि अत्याधुनिक हथियारों को यूक्रेन में युद्ध के मैदान तक पहुंचाया जा सके. शोइगू के अनुसार ज्यादा जोर तोपखाने, मिसाइल सिस्टम और ड्रोन पर होना चाहिए.
‘रूस को हथियारों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा’
पश्चिमी विश्लेषकों ने कहा है कि युद्ध के दौरान रूस को हथियारों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. युद्ध को जारी रखने के लिए उसे तुरंत हथियारों के नये खेप की जरूरत है. आर्टिलरी और मिसाइल उत्पादन पर शोइगु का जोर यह दर्शाता है कि रूस ने युद्ध की रणनीति में बदलाव किया है. शुरू में वह टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों यानी आर्मर वाहन पर जोर दे रहा था जिन्हें युद्ध में यूक्रेन ने भारी नुकसान पहुंचाया. नए रूसी कमांडर जनरल सर्गेई सुरोविकिन ने युद्ध की रणनीति में बदलाव किया है. उनकी सेना यूक्रेन के बिजली प्रतिष्ठानों जैसे प्रमुख बुनियादी ढांचे पर रॉकेट और मिसाइलों से हमला कर रही है.
रूस के रक्षा खर्च में अनुमानित वृद्धि की घोषणा रॉयटर्स की उस रिपोर्ट के बाद की गई है जिसमें कहा गया है कि रूस ने भारत से ऑटो स्पेयर पार्ट के अलावा विमान और ट्रेनों के लिए जरूरी उपकरण की आपूर्ति करने का अनुरोध किया है.युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद मार्च में रूस ने ऑटो के पुर्जों और कारों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. युद्ध को देखते हुए पश्चिमी ऑटोमोबाइल निर्माता रूस छोड़ कर बाहर जाने लगे. पिछले कुछ महीनों में पश्चिमी और जापानी कार निर्माताओं ने रूस छोड़ दिया जिससे कारों और कार के पुर्जों की कमी पैदा हो गई है. चीन अब उस जगह को भरने की कोशिश कर रहा है जो भारतीय ऑटो पार्ट्स निर्माताओं के लिए भी एक अच्छा अवसर है जो इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में वृद्धि के कारण परेशान हैं.
रूस ने बगैर नाम जाहिर किए अपने व्यापार मंत्रालय में एक अधिकारी के हवाले से बताया कि भारत से मांगी गई वस्तुओं की सूची लगभग 500 है. यह रूसी उद्योगों के उत्पादन लाइनों को चालू रखने के लिए जरूरी है, खास कर यूक्रेन युद्ध के कारण उनकी बढ़ी हुई मांगों को देखते हुए.रूस के अनुरोध को भारत औपचरिक रूप से ज्यादा तरजीह नहीं दे रहा है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के हवाले से मीडिया में यह खबर आई कि उन्हें इसको लेकर कोई जानकारी नहीं है कि रूस के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं या वस्तुओं की आपूर्ति की गई है. अगर आपूर्ति को लेकर कोई रिपोर्ट आती भी है तब उसे ज्यादा तरजीह नहीं दी जानी चाहिए.
पश्चिमी गठबंधन भारत के रूसी तेल की खरीद से नाखुश
इस मुद्दे पर चर्चा करने से बचने की कोशिश साफ तौर पर यह दिखाता है कि भारत पश्चिमी देशों को नाराज नहीं करना चाहता. पश्चिमी गठबंधन भारत के रूसी तेल की खरीद से नाखुश है. उनका कहना है कि इससे रूस का खजाना भर जाएगा जिससे उसे युद्ध जारी रखने में सहूलियत होगी. हालांकि, भारत ने इसे यह कह कर खारिज कर दिया कि वह जो तेल रूस से खरीद रहा है वह यूरोपीय देशों की तुलना में काफी कम है.
जहां तक रूस ने भारत से ऑटोमोबाइल, विमान, हेलीकॉप्टर और दूसरी मशीनरी के स्पेयर पार्ट्स की मांग की बात है तो पश्चिमी देश निश्चित रूप से भारत को ये सामान रूस को नहीं देने को लेकर दबाव बना रहे होंगे. पश्चिमी सैन्य विश्लेषक यह देख रहे होंगे की विमान और हेलीकॉप्टर के पुर्जे जैसे सामान अंततः रूसी सेना इस्तेमाल करेगी. भारत से रूस पिस्टन, फ्यूल इंजेक्शन उपकरण जैसी वस्तुओं की आपूर्ति की मांग कर रहा है. पश्चिमी देशों को लग रहा है कि इन चीजों का उपयोग नागरिक के साथ सेना में भी हो सकता है.
भारत और रूस के बीच व्यापार में तेजी से बढ़ोतरी हुई
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत और रूस के बीच व्यापार में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत ने रूस से भारी छूट के साथ तेल और कोयला खरीदा. मार्च 2022 से पहले रूस 0.2 प्रतिशत यानी नगन्य पेट्रोलियम पदार्थ भारत को निर्यात करता था. अब रूस भारत को 22 प्रतिशत पेट्रोलियम पदार्थ निर्यात करता है जिससे वह भारत का इराक और सऊदी अरब से भी बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है. इराक और सऊदी का इस मामले में पहले प्रभुत्व था.
मगर इसका व्यापार पर जोरदार असर पड़ा है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2019-20 में केवल 7 बिलियन डॉलर से केवल अप्रैल और अगस्त के बीच दो तरफा व्यापार करीब तीन गुना बढ़कर 18.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. यह मुख्य रूप से तेल और उर्वरकों के आयात में वृद्धि के कारण हुआ.